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Satyarth Prakash Nyas / सम्पादकीय  / ईष निन्दा

ईष निन्दा

जब भी आप अन्य मनुष्यों के साथ रहते हैं विनिमय करते हैं तो आपको दूसरे की भावनाओं की कद्र करनी होती है। ऐसा नहीं हो सकता कि केवल आप कहें वही परिवार में हो। यही स्थिति समाज या राष्ट्र में है। अनेक विचारधारा राष्ट्र में बह रहीं हो सकतीं हैं आप उनसे सहमत नहीं भी हो सकते हैं परन्तु जब तक वह विचारधारा राष्ट्र या समाज के लिए कोई खतरा पैदा नहीं करती तब तक आपको उसके प्रति सहिष्णु होना चाहिए। यही सभ्य समाज का नियम है। यही मानवता की कसौटी है। हर व्यक्ति को स्वेच्छानुसार किसी भी विचारधारा के अनुगमन का, किसी भी उपासना पद्धति के पालन का व उसकी अभिव्यक्ति का अधिकार है। हाँ यह अवश्य है कि उसकी इस अभिव्यक्ति से किसी को ठेस न पहुँचे, किसी की भावनाएँ आहत न हांे यह ध्यान उसे रखना चाहिए , साथ ही उसके किसी कदम से किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं पहुँचना चाहिए। वस्तुतः किसी भी सभ्य समाज में परस्पर के मतभेदों को मिटाने का एक ही स्वीकृत साधन हो सकता है, वह है स्वस्थ विचार-विमर्श। इस पद्धति को प्रोत्साहित करना चाहिए। मनुष्य को सदैव ज्ञान व सत्य की तलाश रहती है तथा इस तरह के विचार-विमर्श ही इसमें साधक हैं। इस सबमंे सद्भाव आवश्यक है , कटुता के समावेश से बचना चाहिए।
भारत में गत दिनों मीडिया तथा कुछ वर्ग विशेष द्वारा जो माहौल बनाया जा रहा है कि भारत का बहुसंख्यक वर्ग असहिष्णु होता जा रहा है इसका जब विश्लेषण करते हैं तो पता चलता है कि इसमंे कोई सच्चाई नहीं है। एक सुनिश्चित योजना के तहत एक भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है। पुरस्कार वापिसी उसी का अंग है। भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जो सीमा है वह शायद कहीं नहीं। मुझे स्मरण हो रहा है सऊदी अरब के एक युवक रईफ वदावी को एक बेव साईट बनाने, जिस पर वह स्वस्थ धार्मिक बहस को बढ़ावा देना चाहता था, के अपराध में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया। उस पर इलेक्ट्रोनिक माध्यम से इस्लाम की निंदा का आरोप लगाया गया और 2013 में उसे 7 साल की सजा और 600 कोड़ों की सजा सुनाई गयी। 9 जनवरी 2015 को सैकड़ों लोगों के समक्ष उसे पहली किश्त के रूप में 50 कोड़े मारे गए। अपील करने पर उसकी सजा बढ़ाकर 10 वर्ष तथा एक हजार कोड़े कर दी गयी। उसकी पत्नी और बच्चों को जान से मारने की धमकी मिलाने लगी। लिहाजा वदावी की पत्नी इन्साफ हैदर को भागकर अपने तीन बच्चों के साथ कनाडा में राजनीतिक शरण लेनी पड़ी। राज्य द्वारा प्रायोजित यह असहिष्णुता ही वस्तुतः मानवता की विनाशक है।
पाकिस्तान में ईश-निंदा कानून बनाया गया है तथा किस तरह उसके अंतर्गत एक ईसाई महिला को मृत्यु दंड दिया गया है यह घटना संक्षेप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है –
वह जून का झुलसता हुआ महीना था। रोजाना की तरह 50 वर्षीय असिया बीबी अन्य महिलाओं के साथ खेत में काम कर रही थी। एक महिला ने असिया को कहा कि कुएँ से पानी भर कर लादे। गला तो प्रचंड गरमी के कारण असिया का भी सूख रहा था उसने पानी भरकर अपनी सहकर्मी को पिलाने से पूर्व उसी बर्तन से स्वयं भी पानी पी लिया। इस बात को लेकर महिलाओं में कहा सुनी हुयी। असिया बीबी ईसाई महिला है जब कि अन्य सब मुस्लिम महिलाएँ थीं। उनका कहना था ईसाई असिया उनके बर्तन से पानी नहीं पी सकती। बात बढ़ती गयी। कहते हैं कि बहस धर्मों की तुलना तक पहुँच गयी। ईसा मसीह को बुरा-भला कहने पर असिया ने भी कह दिया कि तुम्हारे मोहम्मद साहब ने क्या किया हमारे ईसा तो लोगों के पाप लेकर सूली पर चढ़ गए। इसके बाद तो बात और बढ़ गयी। असिया की पिटायी करते हुए पूरे गाँव में घसीटा गया। असिया का पति आशिक मसीह जब शाम को घर आया तो पत्नी की हालत देख स्तब्ध रहा। पर विपरीत वातावरण में परिवार ने इस ज्यादती के खिलाफ चुप रहना ही श्रेयस्कर समझा। असिया दूसरी सुबह पूर्ववत् काम पर चली गयी। पाँच दिन पश्चात्् स्थानीय मौलवी की अदालत में ईशनिंदा कानून के अंतर्गत असिया बीबी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया गया एवं चीखती चिल्लाती पाँच बच्चों की माँ असिया को पुलिस पकड़ कर कर ले गयी। असिया तो जेल में बंद हो गयी पर आशिक और उसके परिवार पर अत्याचार और दबाब का सिलसिला चालू रहा। परिणामतः पूरे परिवार को कम से कम 15 बार अपना ठिकाना बदलना पड़ा। असिया को पाकिस्तान की एक अदालत ने मौत की सजा सुनाई। दुनिया भर के मानवाधिकार संगठनों में हलचल मच गयी। पाकिस्तान में भी ईश निंदा कानून के कुछ विरोधी रहे हैं ,उनमंे से पंजाब के गवर्नर श्री तासीर का नाम उल्लेखनीय है। श्री ईष निन्दातासीर ने असिया को मृत्युदंड देने की भी खिलाफत की। पर कट्टरपंथी वातावरण में उन्हें इसकी कीमत तब चुकानी पड़ी जब कार में बैठते समय उनके ही गाड्र्स में से एक मुमताज हुसैन कादरी ने उनके ऊपर 26 बार गोली चला कर उनका प्राणांत कर दिया। पुलिस अरेस्ट में उसका बेख़ौफ़ बयान था कि असिया की तरफदारी करने के कारण उसने सलमान तासीर को मारा। बाद में कादरी ने खुलकर कहा कि उसने कुछ गलत नहीं किया। कादरी के समर्थन में अनेक प्रदर्शन पाकिस्तान में हुए वह जैसे राष्ट्रीय हीरो बन गया। बी.बी.सी. के अनुसार कादरी को मौत की सजा सुनाने वाले जज परवेज अलीशाह को इतनी धमकियाँ मिलीं कि उन्हें देश छोड़कर सऊदी अरेबिया जाना पड़ा।
2000 में ही एक अन्य शख्शियत को भी बलिदान देना पड़ा। पाकिस्तान के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री एकमात्र इसाई मंत्री मुर्तजा बहिष्त को चरमपंथियों ने गोलियों से भून दिया। मुर्तजा पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून के विरोधी थे तथा असिया बीबी को भी राष्ट्रपति की क्षमा दिलवाना चाहते थे। उन्हें कई बार मौत की धमकियाँ मिल रहीं थीं। उनकी कनाडा यात्रा में भी तालिबानी गुट ने उन्हें बाज आने को कहा था अन्यथा उनका सर कलम कर दिया जाएगा, पर मुर्तजा ने इसकी परवाह नही की नतीजा उनका क़त्ल कर दिया गया।
गत वर्ष वहादुद्दीन जकारिया विश्वविद्यालय मुल्तान के एक प्रवक्ता जुनैद हफीज के ऊपर विश्वविद्यालय के कट्टरपंथी छात्रों ने ईश निंदा का आरोप लगाया। उनकी ओर से रशीद रहमान वकील के तौर पर कार्य कर रहे थे। रहमान को कई बार धमकी मिली कि वे जुनैद की ओर से केस लड़ना बंद कर दें। रहमान ने इस पर ध्यान नहीं दिया नतीजतन उनके मुल्तान स्थित कार्यालय में अज्ञात बंदूकधारियों ने उन्हें गोलियों से भून दिया। उनके दो सहायक भी घायल हो गए। रहमान एक मानवाधिकार कार्यकर्ता भी थे।
गत दिनों भारत में असहिष्णुता को लेकर जानबूझकर एक ऐसा वातावरण बनाने की कोशिश की गयी कि ऐसा लगने लगे कि भारत अल्पसंख्यकों के लिए सर्वाधिक असुरक्षित देश बन गया है। क्या यह वास्तविकता है? कदापि नहीं। यह ठीक है कि दादरी में एक हत्या हुई, पर उसकी प्रशंसा किसने की?वह निश्चितरूपेण निंदनीय है। इस देश का बहुसंख्यक वर्ग अगर असहिष्णु होता तो क्या डा. जाकिर हुसैन और डा. अब्दुल कलाम शीर्षस्थ पद पर अभिषिक्त हो पाते? क्या अजहर क्रिकेट टीम के कप्तान बनते?क्या तीनों खान करोड़ों ,अरबों में खेल पाते। आज भारत में अपने लिए खतरा महसूस करने वाले ध्यान देंगे कि विश्व में अन्य बड़े देश उन्हें किस दृष्टि से देखते हैं।
क्या वे नाइजीरिया, उज्बेकिस्तान, आस्टेªलिया, जर्मनी, अंगोला, रूस, फ्रांस, चीन आदि की वर्तमान स्थिति से परिचित हंै?क्या उन्हें पता है कि आतंकवाद की पृष्ठभूमि का विश्लेषण कर ये राष्ट्र एक ही निष्कर्ष पर पहुँचे हैं और उन्होंने पाबंदी का दायरा केवल आतंकियों तक सीमित नहीं रखा है। इन देशों में इस्लामी जीवन पद्धति के अनेक अंगों को प्रतिबंधित कर दिया है। एक समाचार के अनुसार ब्रूनेई, जहाँ ईसाई समुदाय पर्याप्त संख्या में हैं, वहाँ के सुलतान ने क्रिसमस मनाए जाने को दंडनीय अपराध घोषित कर दिया है। जो कोई भी क्रिसमस मनायेगा उसे 5 वर्ष की जेल या तेरह लाख रुपयों के बराबर जुर्माना देना पडे़गा। सोमालिया में भी क्रिसमस और नववर्ष मनाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। सऊदी अरब की तो बात ही छोड़ दीजिये। ये देश छोड़कर जाने वाले क्या ऊपरलिखित देशों में जाने वाले हैं?क्या विडम्बना है कि एक ओर माँ के लाडले उसकी अस्मिता की रक्षा के लिए यह जहां तक छोड़ जाते हैं तो दूसरी और कुछ लोग यहाँ की माटी में सब प्रकार की समृद्धि का अर्जन कर कृतज्ञता प्रकाशन की बात तो दूर, देश छोड़ने की बात करते हैं। वस्तु स्थिति यह है कि इस देश का बहुसंख्यक वर्ग सदा से ही कुछ ज्यादा ही सहिष्णु रहा है और आगे भी रहेगा। वरना भारत के ही एक विश्वविद्यालय में एक आर्य विद्यार्थी को अपने जन्मदिवस के अवसर पर यज्ञ करने से नहीं रोका जाता और भारत के ही विश्वविद्यालय में भारत के ही प्रधानमंत्री को आमंत्रित न करने की बात उठती।
अतः राजनीतिक उद्देश्य के लिए जो नौटंकी गत दिनों खेली गयी है वह देश में प्रवाहमान समरसता के लिए शुभ नहीं है। इसकी पुनरावृत्ति न ही हो यह सम्पूर्ण समाज के लिए हितकर है।