Alienum phaedrum torquatos nec eu, vis detraxit periculis ex, nihil expetendis in mei. Mei an pericula euripidis, hinc partem.
Navlakha Mahal
Udaipur
Monday - Sunday
10:00 - 18:00
       
Satyarth Prakash Nyas / सम्पादकीय  / मत चूके चौहान

मत चूके चौहान

आज पूरा देश संत्रस्त है। निजी स्वार्थों की प्रतिपूर्ति के अतिरिक्त राज्य प्रत्येक करणीय कर्त्तव्य के क्रियान्वयन में पूर्णतः विफल है।
त्यं चिदित्था कत्पयं शयानमसूर्ये तमसि वावृधानम् ।
तं चिन्मन्दानो वृषभः सुतस्योच्चैरिन्द्रो अपगूर्या जघान ।।
बृहस्पते परि दीया रथेन रक्षोहामित्राँ अपबाधमानः ।
प्रभफ्जन्त्सेनाः प्रमृणो युधा जयन्नस्माकमेद्ध्यविता रथानम् ।।
ऋग्वेद 5/32/6 तथा यजुर्वेद 17/36- इन उपरोक्त मंत्रों का भाष्य करते हुए महर्षि दयानन्द राज्य के प्राथमिक कर्तव्यों को रेखांकित करते हुए लिखते हैं-
‘जैसे सूर्य के द्वारा अन्धकार का निवारण करके मेघ का हनन किया जाता है, वैसे ही राजा के द्वारा दुष्टों का नाश और श्रेष्ठों का पालन किया जाना चाहिए।’ ‘राजा और सेनापति अपनी सेना को बढ़ाते हुए तथा शत्रु सेना को नष्ट करते हुए धार्मिक प्रजा को निरन्तर उन्नत करें।’ इस प्रकार बाह्य शत्रुओं से रक्षा तथा प्रजा के जान, माल तथा प्रतिष्ठा की रक्षा करना राजा का प्राथमिक दायित्व है।
पाकिस्तान, चीन द्वारा हमारी सीमाओं पर दिन-प्रतिदिन जिस प्रकार आक्रमण किये जा रहे हैं और उस ओर भारत सरकार का जो रवैया है वह सभी के सम्मुख है। प्रजा की रक्षा का जहाँ तक प्रश्न है जिस देश में 4-5 वर्ष की मासूम बालिकाओं की अस्मिता और प्राण सुरक्षित नहीं हैं, उस देश के शासकों को चुल्लू भर पानी में डूब मरने के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं है। पर यह तो तब हो जब कुछ शर्म बाकी बची हो। परन्तु हमारे शासकों की बेशर्मी तथा स्वार्थपरता ने तो सभी सीमाओं को लॉघ लिया है। शासन तंत्र भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबा है। आज का शासन अपने प्राथमिक कर्त्तव्यों के निर्वहन में पूर्णतः अक्षम है। पहले घोटालों की राशि के आगे जो शून्य लगती थीं वह गिनने योग्य होती थीं। आज के घोटालों की राशि इतनी ज्यादा है कि उसकी शून्यों को कम से कम हम तो गिनने में तकलीफ महसूस करते हैं। भ्रष्टाचार से अर्जित राशि तथा विदेशों में जमा काले धन को तमबवअमत कर लिया जाय तो देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाय। परन्तु यह सब शासनतंत्र के चरित्र पर निर्भर करता है। अन्यथा यह राशि भी लोक-कल्याण में नहीं निजी कल्याण में साधक बनेगी।
आज स्थिति अतीव निराशाजनक है। लाखों करोड़ों रुपये के कोयला घोटाले की जाँच में ऑच प्रधानमंत्री तक पहुँच रही है। उच्चतम न्यायालय चाहता है कि इसकी निष्पक्ष जाँच हो, पर कैसे? इस मामले से संबंधित फाइलें ही गुम कर दी गयीं। अब कर लीजिए जाँच? अभी एक चैनल की सूचना के अनुसार इन गुम फाइलों में से कुछ, रॉची में कूड़ेदान में पायी गयीं हैं। और फाइलें ही क्यों जिन्होंने पूरे देश को कूड़ेदान में डाल रखा है उस शासक वर्ग का बेशर्म बयान है कि इस बारे में वे कुछ नहीं जानते हैं। निराशाजनक माहौल में केवल न्यायालय ही अपनी चमक कभी-कभी दिखा रहा है। अभी हाल में आया निर्णय कि लोकसेवक नेताओं के मौखिक आदेश को न मानें तथा लोकसेवकों के ट्रान्सफर की सिफारिश पर नेतागण कारण लिखें, स्वागत योग्य है। अपने निज के राजकीय सेवा के अनुभव के आधार पर हम कह सकते हैं कि उक्त दोनों निर्देशों की यदि पालना होती है तो बैचेनी महसूस कर रहे ईमानदार अधिकारी स्वतंत्रता से अपना कार्य कर सकेंगे। स्थानान्तरण की सुविचारित प्रणाली विकसित हो जाय तथा नेताओं की मनमर्जी से अकारण होने वाले स्थानान्तरणों पर रोक लग जाय तो अप्रत्याशित शुभ परिणाम सामने आ सकते हैं। इस संदर्भ में निर्वाचनों से पूर्व थोक संख्या में उच्चाधिकारियों के ट्रान्सफर तथा अशोक खेमका जैसे अधिकारियों का 40 बार स्थानान्तरण ध्यातव्य है। दुर्गाशक्ति नागपाल के संदर्भ में आखिर एक राजनेता ने ही तो कहा था कि चन्द मिनिटों में हमने निलम्बित करवा दिया।
प्रजातंत्र में भ्रष्टाचार के अनेक रूप होते हैं। किसी वर्ग-विशेष को विशेष सुविधा देना अथवा देने का वायदा कर वोट बैंक के रूप में प्रयुक्त करना सबसे बड़ा राजनीतिक भ्रष्टाचार है। जातिगत वोट-बैंक की उपस्थिति सर्वविदित है। सभी दल प्रत्याशी की योग्यता व ईमानदारी को देख कर नहीं, इसी जाति वोट-बैंक को ध्यान में रख प्रत्याशी खड़ा करते हैं। अल्पसंख्यकों को वोट-बैंक बनाना यह आज तक का राजनीतिक दलों का प्रिय हथियार रहा है। इससे शायद ही कोई दल बचा हो। आरक्षण का वर्त्तमान स्वरूप तथा अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण भ्रष्टाचार का ही एक ऐसा रूप है जो ‘विपन्नों के उत्थान’ के लोक लुभावन पैकेज में प्रस्तुत किए जाने के कारण, तथा केवल इसी कारण थोक में वोट मिलने के इतिहास के कारण इस तंत्र में पूर्णरूपेण स्थापित हो चुका है। मत चूके चौहान
प्रत्येक राजनेता उक्त तथ्य के चलते कितना विवश है इसका इससे अच्छा क्या उदाहरण होगा कि सम्पूर्ण शासनतंत्र को पूर्णरूपेण बदल कर स्वच्छ सुशासन देने का वायदा कर मैदान में कूदे अरविन्द केजरीवाल भी इस थोक वोट बैंक के लोभ का संवरण न कर सके। एक विस्तृत आश्वासनात्मक पत्र मुस्लिम समुदाय को उन्होंने लिखा है। उसमें, उनके अनुसार, जो वायदे किए हैं वे जायज हैं, अल्पसंख्यक समुदाय के उत्थान की बात है परन्तु हमारा कहना है कि यह आश्वासन तो भारत की सम्पूर्ण जनता के लिए होना चाहिए, वर्ग विशेष को पृथक् से क्यों? स्पष्ट है कि इस थोक बैंक की आपको भी आवश्यकता जान पड़ी। राजनीतिक भ्रष्टाचार की फिसलन भरी पट्टी पर यह केजरीवाल की प्रथम फिसलन है। आगे वे औरां का अनुसरण नहीं करेंगे इसकी कोई गारण्टी नहीं। वस्तुतः शासक तथा प्रजा की जितेन्द्रियता ही भारत की धवल कीर्ति की जामिन है। महर्षि दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश में स्पष्ट लिखते हैं कि ‘जब मनुष्य धार्मिक रहते है तभी तक राज्य बढ़ता रहता है और जब दुष्टाचारी होते हैं, तब नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है।’ आज ठीक यही स्थिति है। आज राष्ट्र को एक समग्र क्रान्ति की आवश्यकता है। ऐसी क्रान्ति को असम्भव मान जो भी प्रयास होंगे उससे पूर्ण इच्छित परिणाम नहीं मिल सकता। गौरवशाली, मूल्याधारित भारतीय संस्कृति ऐसे प्रतिनिधियों द्वारा कैसे अभिव्यक्त होगी जो रुपयों के अलावा मुलायम गोश्त भी रिश्वत में शिद्दत से चाहते हैं? विधान-मन्दिरों में बैठ पोर्न फिल्में देखते हैं। तथाकथित गुरुओं के समक्ष लाइन में खड़े हो अपने फोलोअर्स को भी अन्धविश्वास की गहरी खाई में धकेल देते हैं। ऐसे नेताओं से दुराचार-निवारण की आशा करना ही व्यर्थ हैं।
इन सब परिस्थितियों में जनता ठगी व किंकर्त्तव्यविमूढ़ खड़ी है। परन्तु इस किंकर्त्तव्यविमूढ़ता को ठोकर मार समर-क्षेत्र में कूदने का समय आ गया है। पाँच वर्ष में एक बार आपको मौका मिलता है कि देश की किस्मत को आप योग्य हाथों में सौंपे। पर आपके प्रमाद व निष्क्रियता के कारण सुयोग्य सच्चरित्र प्रतिनिधि शासन का हिस्सा नहीं बन पाते। आज के प्रतिनिधित्व की गणित देखें। अमूमन 60ः मतदान हम मान लें। इसमें से भी कई उम्मीदवारों के होने के कारण अमूमन 30-32 प्रतिशत वोट पाने वाला प्रत्याशी विजित हो जाता है। इस प्रकार 70ः लोगों द्वारा नकारा गया प्रत्याशी शासन का हिस्सा बन जाता है। इस स्थिति का निराकरण केवल शत-प्रतिशत मतदान द्वारा संभव है। ईमानदार, सेवाभावी, किसी भी प्रकार की गुटबन्दी से दूर सबका हित चाहने वाले, भारतीय अस्मिता में विश्वास रखने वाले, भारतीय गौरवशाली संस्कृति के प्रति अनुरक्त प्रत्याशियों को विजित बनाइए। अगर आप मतदान के पवित्र कर्त्तव्य का प्रयोग प्रमादवश अथवा किसी भी अन्य कारण से नहीं करते हैं तो फिर आपको किसी को कोसने का अधिकार भी नहीं है।
याद रखें पृथ्वीराज चौहान ने 17 बार गलती करने के बाद 18वीं बार ‘मत चूके चौहान’ सुनते ही आततायी का अन्त करने में सफलता प्राप्त की थी, उसी का अनुसरण आज हम सबको करने की आवश्यकता है।