कहीं देश न जल जाए
October 1, 2012
[vc_row][vc_column][vc_column_text] भर्तृहरि जी ने ठीक ही लिख है कि मनुष्य की तृष्णा कभी जीर्ण नहीं होती। और वह तृष्णा अगर सत्ता की हो तो इतनी विकराल हो जाती है कि फिर व्यक्ति को समस्त दायित्व बोध, नैतिकता, सामजिक समरसता की भेंट चढ़ाने मेें एक क्षण की भी हिचकिचाहट नहीं होती। कहने को तो संविधान के अनुसार...