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Satyarth Prakash Nyas / सम्पादकीय  / राम की रामायण

राम की रामायण

इस बात को मानने में हमें कोई संकोच नहीं है कि मात्र 17 वर्ष की आयु में एल.एल बी. की डिग्री हासिल करने वाले श्री राम जेठमलानी एक बेहतर विधिवेŸा हो सकते हैं परन्तु चाहे वह बहुविवाह हो अथवा बिन्दास जीवन शैली उनकी भारतीय संस्कृति और इसके शाश्वत मूल्यों के प्रति श्रद्धा सदैव संदिग्ध प्रतीत होती रही है। आधुनिक पाठक की यह मनःस्थिति हो गई है कि भारतीय संस्कृति की बात करने वाला एक व्यक्ति उन्हें प्रतिगामी प्रतीत होता है। परन्तु निष्पक्ष अध्येता निःसंकोच मानते हैं कि यह भारतीय संस्कृति के केन्द्र में अवस्थित उदात्त मूल्य ही हैं जो आज भी भारत की ताकत हैं। जो कौम अपने उज्ज्वल अतीत को विस्मृत कर देती है वह मृतप्रायः हो जाती है। जब घर में शिशु का जन्म होता है तो उसके नामकरण के संदर्भ में सोच विचार होता है। प्रायः माता-पिता शिशु हेतु उस नाम का चयन करते हैं जिस नाम को धारण कर शिशु उस नामधारी जैसा बन सके। प्रमाणस्वरूप आप राम, कृष्ण आदि नाम बहुतायत में देख सकते हैं पर रावण, कुम्भकरण, मंथरा और कैकेयी आदि नहीं।
राम जेठमलानी जी का नामकरण भी संभवतः इसी मनोविज्ञान के आधार पर हुआ होगा। माता-पिता ने आस लगाई होगी कि बालक मर्यादा पुरुषोŸाम राम के चरित्र को अपने जीवन में ढालेगा, पर तब उन्होंने यह कभी नहीं सोचा होगा कि उनका अपना ‘राम’ वैदिक संस्कृति के समस्त उदाŸा तत्वों व नैतिक मूल्यों से अपने जीवन के कुन्दन बना लेने वाले, बहुविवाह के छुटपुट अस्तित्व के होते हुए भी ‘एक पत्नीव्रत’ का निष्ठा से पालन करने वाले मर्यादा पुरुषोŸाम श्री राम को ‘बुरा पति’ होने का खिताब दे देगा। जिन मुद्दों पर मुखर होकर बोलना चाहिए वहाँ मूक रहने वाले, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तथाकथित पक्षधर यहाँ यह कहेंगे कि राम जेठमलानी जी का वक्तव्य उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। हम उसे स्वीकार कर यह निवेदन करना चाहेंगे कि गलत तथ्यों को प्रस्तुत कर किसी इतिहास पुरुष पर विपरीत टिप्पणी करना अनुचित है। वास्तविकता यह है कि श्री जेठमलानी द्वारा दिए गए दोनों वक्तव्य आधारहीन तथा गलत हैं। इसे प्रमाणित करने से पूर्व यह भी निवेदन करना चाहेंगे कि अगर मत मतान्तरों की बात कही जाए तो वहाँ ऐसे कई चरित्र हैं जिन पर इतिहास सिद्ध टिप्पणी करने का प्रचुर स्थान है, वहाँ श्री जेठमलानी जी अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रदर्शन कब करेंगे, इसकी प्रतीक्षा रहेगी। सीता-त्याग अनैतिहासिक एवं किम्वदन्ती मात्र –
श्री राम के जीवन के प्रमाणित दस्तावेज की जब बात आती है तब श्री राम-जीवन के सभी विशिष्ट अध्येताओं का सर्व सम्मत मत वाल्मीकि रामायण को जाता है। आज वाल्मीकि रामायण के भी तीन पाठ उपलब्ध हैं। यहाँ यह भी जान लेना चाहिए कि बाल्मीकि रामायण की रचनाशैली, बालकाण्ड की प्रथम अनुक्रमणिका तथा अन्य साक्ष्यों के आधार पर रामायण के अध्येता बालकाण्ड की अधिकांश सामग्री तथा संपूर्ण उŸारकांड को प्रक्षिप्त मानते हैं।
सीता-त्याग की किम्वदन्ती इसी में होने से प्रक्षिप्त है। फादर कामिल बुल्के के अनुसार महाभारत में भी रामकथा संक्षिप्त रूप से आती है पर उसमें भी सीता त्याग नहीं है। प्राचीन पुराणों में जहाँ रामकथा आती है यथा हरिवंश पुराण, वायु पुराण, विष्णु पुराणादि वहाँ भी सीता त्याग का अभाव है।
पाठक गण श्रीराम के एकपत्नीव्रत की संक्षिप्त झाँकी देखें और निर्णय करें कि राम कैसे पति थे । वन गमन के अवसर पर सीता जी वन जाने हेतु जिद करती हैं तो राम अन्तत्वोगात्वा कहते हैं-
न देवि तव दुःखेन स्वर्गमप्यभिरोचये। न हि मेऽस्ति भयं किंचित्स्वयम्भोरिव सर्वतः।। अयोध्या कांड 30/27 अर्थात् हे देवी ! मैं तुम्हें यहाँ दुखी रखकर सुख का अनुभव कैसे कर सकता हूँ ?मुझे किसी का भय है ऐसी बात भी नहीं है यदि तुम मेरे बिना स्वर्ग नहीं चाहतीं तो मैं भी तुम्हारे बिना स्वर्ग की इच्छा नहीं रखता । सीताहरण के पश्चात् राम की व्याकुलता को मानसकार निम्न प्रकार व्यक्त करते हैं-
हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी, तुम्ह देखी सीता मृगनैनी। अरण्यकाण्ड अशोक वाटिका में श्री हनुमान सीता जी से कहते हैं-
अनिद्रः सततं रामः सुप्तोऽपि च नरोत्तमः। सीतेति मधुरां वाणीं व्याहरन् प्रतिबुध्यते।। सुन्दर कांड 36/44 हे देवि सीता ! आपके वियोग में नरश्रेष्ठ राम को रात्रि को नींद नहीं आती, जो कभी सोये भी तो सीते! सीते ! यह मधुर शब्द राम की रामायण कहते -कहते जाग पड़ते हैं ।
शूर्पनखा के विवाह प्रस्ताव पर कवि के शब्दों मे श्री राम कहते हैं – हम आर्य जाति के बच्चे हैं, रघुवंशी वैदिक धर्मी हैं जो अधिक एक से ब्याह करे कहते हैं वेद दुष्कर्मी हैं इसी अवसर पर स्वयं सीता कहतीं हैं-
मनस्यपि तथा राम न चैतद्विद्यते क्वचित्। स्वदारनिरतस्त्वं च नित्यमेव नृपात्मज।। अरण्यकाण्ड 9/6 प्रभो! परस्त्रीगमन तो आपके संकल्प में भी नहीं आया क्यांकि आप निश्चय एकपत्नी व्रती हैं। सीता से इतना प्यार करने वाले राम स्वप्न में भी सीता -त्याग नहीं कर सकते। इतिहास में की गयीं मिलावटों को बलपूर्वक नकारना सीखें। अब पाठक स्वयं निर्णय करें कि राम वास्तव में बुरे पति थे?
जब घटना ऐतिहासिक न होकर किम्वदन्ती हो तो वह अपना स्वरूप परिवर्तित करती रहती है। ‘सीता-त्याग’ के साथ भी ऐसा ही है। राम ने सीता को क्यों त्यागा वह कारण भी बदलता रहा है। रामायण पर जीवन भर काम करने वाले फादर कामिल बुल्के ने अपनी पुस्तक रामकथा में विवरण देते हुए सीता त्याग के विभिन्न कारणों को निरूपित किया है। पाठकों के लाभार्थ प्रस्तुत हैं।
1. लोकापवाद-अर्थात् लोकनिन्दा के कारण। परन्तु यहाँ किसी धोबी का उल्लेख नहीं है। वाल्मीकि रामायण के उŸारकाण्ड, रघुवंश आदि में यह कारण बताया गया है यद्यपि कथानक पूर्णरूपेण एक जैसा नहीं है। यहीं वाल्मीकि रामायण में भृगु ऋषि का शाप भी इसका कारण बताया है।
2.धोबी की कथा-भागवत पुराण, पद्म पुराण, मानस आदि में यह सर्वाधिक ज्ञात तथा प्रचलित कारण उपलब्ध होता है।
3. कुछ अल्पज्ञात रामायणों में एक कल्पना की गई है- जब सीता जी गर्भवती हो गईं और उनकी सौतनों (स्मरण रखें राम के एक ही पत्नी सीता थी, सौतनें मनमानी कल्पना है और सुधी पाठकों को यह बताने में समर्थ है कि इतिहास की/ महत्वपूर्ण ग्रन्थों की सुरक्षा न की जाए तो वह किस प्रकार विकृत होते चले जाते हैं ) को यह सहन नहीं हुआ तो उन्होंने सीता से अनुनय-विनय करके रावण के चरणों का चित्र बनाने को कहा। सीता ने जब वह चित्र बना दिया तो सौतनों ने श्री राम को वह चित्र दिखाकर कहा कि सीता रावण की अनुरक्त है। इस पर राम ने सीता को त्याग दिया।
4. जो लोग श्री राम के ईश्वरावतार मानते हैं उनको यह ठीक न लगा कि निरपराध सीता को उनके आराध्य दण्डित करें। इसका सही उपाय तो प्रक्षिप्त अंश को नकारना था पर ऐसा न कर एक क्लिष्ट कल्पना की गई। वह यह कि रावण द्वारा अपहृत किए जाने के पूर्व ही छाया सीता ने उनका स्थान ले लिया।
5. अब नए रामायणकार श्री राम जेठमलानी ने धोबी की कथा के ‘धोबी’ को ‘मछुआरा’ लिखकर रामकथा को नवीन आयाम दिए हैं। पचासों ज्ञात, अल्पज्ञात रामायणों में मछुआरे का वर्णन कहीं नहीं है। अतः रामायण के शोधकर्ताओं के लिए श्री राम जेठमलानी जी ने विषय प्रस्तुत कर दिया है। धोबी का नाम ‘रजक’ था तो मछुआरे का नाम शोधार्थी खोजें। वस्तुतः रामायणकालीन आर्यों में मांसाहार सर्वथा निषिद्ध था। इसलिए ‘मछली’ पकड़ने वाले ‘मछुआरे’ का अस्तित्व भी अज्ञात है।
श्री जेठमलानी जी रचित रामायण की दूसरी घटना- प्रिंट तथा इलेक्ट्रोनिक मीडिया के अनुसार श्री लक्ष्मण पर श्री राम जेठमलानी ने आरोप लगाया कि वे राम से भी अधिक बुरे थे। ‘लक्ष्मण की निगरानी में सीता का अपहरण हुआ और जब राम ने उन्हें सीता को ढूढ़ने के लिए कहा तो उन्होंने यह कहते हुए बहाना किया कि वो उनकी भाभी थीं, उन्होंने कभी उनका चेहरा नहीं देखा, इसलिए वे उन्हें पहचान नहीं पायेंगे।’
उक्त वार्तालाप/घटना का विवरण भी ‘रामायण’ को श्री जेठमलानी की देन है क्योंकि यह तथ्य कि लक्ष्मण ने सीता का मुँह कभी नहीं देखा तथा सीता-अन्वेषण के समय राम-लक्ष्मण का ऐसा कोई संवाद हुआ था, अभी तक अज्ञात ही था। वस्तुतः श्री लक्ष्मण के संयम की रामायण में अनेक स्थलों पर चर्चा है। पंचवटी निवास के समय भी ऐसा नहीं है कि सीता-लक्ष्मण के जो संवाद प्राप्त हैं उनमें लक्ष्मण ने सीता की ओर देखा भी नहीं। आम जिन्दगी में सभी माता-बहिन आदि से संवाद करते हैं चेहरा देखते हैं परन्तु भावना ‘माता’ स्वरूप रहती है। यही स्थिति लक्ष्मण के साथ थी। फिर यह ध्यान रखें कि श्री राम जेठमलानी द्वारा विवेच्य संवाद कभी हुआ ही नहीं। वस्तुतः यह घटना ऋष्यमूक पर्वत की है। जिस समय सीता का अपहरण कर रावण उन्हें बलात् ले जा रहा था तो सीता को ऋष्यमूक पर्वत पर कुछ व्यक्ति दिखे। अतः उन्होंने अपने कुछ आभूषण उतार कर पर्वत पर गिरा दिए ताकि राम जब सीता-सन्धान करेंगे तो उन्हें सहायक हो सकेंगे। ठीक ऐसा ही हुआ। सीता को खोजते-खोजते राम-लक्ष्मण ऋष्यमूक पर्वत पर पहुँचे। हनुमान से भेंट हुई। सुग्रीव से मित्रता हुई। तब सीता-सन्धान का प्रश्न उपस्थित होने पर सुग्रीव ने कहा कि एक आर्तनाद करती स्त्री ने ये कुछ आभूषण गिराए थे, आप पहचान लें। तब श्रीराम लक्ष्मण से भी कहते हैं वे उन आभूषणों को पहचानें।
इस पर श्री लक्ष्मण कहते हैं-
किष्किन्धा काण्ड 6/21
नूपुरे त्वभिजानामि, नित्यं पादाभि वन्दनात्।। किष्किन्धा काण्ड 6/22
श्रीराम! मैं माता सीता के भुजबन्ध व कुण्डलों को नहीं पहचानता परन्तु उनके बिछुओं की अवश्य पहचान कर सकता हूँ क्योंकि मैं नित्य उनके चरणस्पर्श करता था।
रामायण का उपरोक्त प्रसंग भारतीय संस्कृति की गौरव गाथा को बखान कर रहा है। ‘मातृवत् परदारेषु’ की भावना हमारी संस्कृति में रची बसी थी। धन्य हो लक्ष्मण! तुम्हारा दिव्य चरित्र लाखों वर्ष पश्चात् आज भी स्फटिक की भाँति चमचमा रहा है। 14 वर्ष बिना पत्नी के जंगल में बिताना पर ब्रह्मचर्यव्रत से किफ्चित भी न डिगना, भाभी को माँ समान मान नित्य चरण-स्पर्श करना, आदि भले ही कुछ लोगों के लिए महत्वहीन हो परन्तु भारतीय संस्कृति की महिमा तुम्हारे समान आदर्श चरित्रों से ही है। श्री जेठमलानी के दोनों बयानों के संदर्भ में स्थिति स्पष्ट करने के पश्चात् हम उन सभी राम-भक्तों की सेवा में निवेदन करना चाहेंगे कि अवतारवाद व चमत्कारवाद की भूलभुलैया में राम व कृष्ण सरीखे जिन महनीय, प्रेरक महापुरुषों को हमने अवास्तविक बना दिया है, उससे उन्हें निकाल लें ताकि वे प्रेरणा के स्रोत बन सकें। और प्रक्षेपों को समूल नष्ट करें।
श्री जेठमलानी व अब विनय कटियार तथा आगे भी इस पंक्ति में जुड़ने वाले नेताओं से निवेदन है कि ऐतिहासिक तथ्यों की ठीक से पहचान करें। और ऐसे महापुरुषों के जीवन आदर्शों को अपने जीवन में स्थान प्रदान कर ‘स्वकल्याण’ करें।