श्री रामसेतुःआस्था नहीं इतिहास
कुण्डली पुत्र एक विचित्र नाम प्रतीत होता है। पर इससे पूर्व कि हम ‘कुण्डली पुत्र’ से हमारा तात्पर्य निवेदित करें, इसकी
पृष्ठभूमि बताना चाहेंगे। श्रीगंगानगर पोस्टिंग के समय हमारी प्रयोगशाला अस्पताल परिसर में होने से अनेक चिकित्सक मित्र
मध्याँ में हमारे यहाँ आते थे। लगभग 23-24 साल पूर्व वहाँ दिल्ली से एक ‘स्त्री रोग विशेषज्ञ’शल्य चिकित्सक आए थे। वे
कह रहे थे कि आजकल एक नया प्रचलन प्रारम्भ हुआ है। माता-पिता ज्योतिषियों के निर्देशन में उस सर्वात्तम समय का चयन
करते हैं जिसमें उनकी होने वाली सन्तान का फलादेश सर्वात्तम हो। अब क्योंकि निर्धारित समय पर सामान्य प्रसव का होना
आवश्यक नहीं है अतएव निर्धारित घण्टों-मिनिट पर निश्चित रूप से सन्तान का जन्म हो इसे सुनिश्चित करने हेतु वे
चिकित्सकीय दृष्टि से आवश्यक न होने पर भी ‘सीजेरियन’ (शल्य क्रिया) द्वारा प्रसव का चयन करते हैं। हमारे मुँह से हठात्
निकला-‘कुण्डली पुत्र’ अर्थात् ऐसे बच्चे जिनकी कुण्डली पूर्व तैयार करा तथा इस सर्वश्रेष्ठ फलादेश वाली कुण्डली के
समयानुसार सन्तान को दुनिया में लाया जाय। यह अवधारणा व्यक्ति के अंधविश्वास की पराकाष्ठा हमें लगी। क्योंकि
चिकित्सकीय दृष्टि से माँ अथवा बच्चे की जिन्दगी की सुरक्षा की दृष्टि से अत्यन्त आवश्यक होने पर ही शल्य क्रिया का सहारा
लिया जाता था। पर उक्त अंधविश्वास के चलते अनावश्यक रूप से शल्य क्रिया की जोखिम चयनित की जाती है।
जन्म कुण्डली का अंधविश्वास संभवतः सबसे व्यापक अंधविश्वास है जिस पर अति विस्तृत चर्चा की जा सकती है। पर अति
संक्षेप में संकेतात्मक रूप से इतना ही कहेंगे कि जन्म पत्रिका के 12 भाग होते हैं व जिस जातक का जन्म जिस समय हुआ है
उस समय के लग्न व लग्न में बैठे लग्नेश ग्रह की स्थिति को देखना होता है। ग्रह तथा बारहभाव महत्वपूर्ण माने गये हैं।
फलादेश इसी पर आधारित होता है। यथा – लग्न में चन्द्रमा हो तो जातक बलवान ऐश्वर्यशाली, सुखी होगा।
चन्द्र यदि दूसरे भाव में है तो पराक्रम से धन प्राप्ति आदि आदि। अब ‘कुण्डली-पुत्र’ किस समय दुनिया में आवे तथा किस
समय न आवे यह पूर्व निर्धारित कर लिया जाता है। उपरोक्त उदाहरण में ही यदि चन्द्रमा बारहवें भाव में होगा तो जातक नेत्र
रोगी तथा कफ रोगी होगा, छठे भाव में अल्पायु होगा। अतः जन्म समय वह निर्धारित किया जावेगा जब चन्द्रमा छठे व बारहवें
भाव में न हो।
1. फलित ज्योतिष के अंतर्गत 12 राशियों में विश्व के सभी उत्पन्न मानव आ जाते हैं। कभी भी जाँच करके देख लें कि विश्व
की 1/12 आबादी का भाग्य एकसा नहीं हो सकता।
2. नित्य अखबारों में छपने वाले फलादेशों की भाषा देखें। प्रत्येक का 70 प्रतिशत भाग सामान्य रूप से अन्य राशि वाले पर
भी लागू हो जायेगा।
3. एक प्रयोग के अंतर्गत 662 ऐसे व्यक्तियों की जन्म कुण्डलियाँ एकत्रित की गईं जिनमें से 331 ने आत्महत्या की तथा तथा
331 की सामान्य मृत्यु । सभी जन्म कुण्डलियाँ फलादेश हेतु ज्योतिषियों को दे दी गईं। फलादेश तुक्के ही रहे तीर न बन सके।
4. ज्पउम.ज्ूपद (ये वे नवजात हैं जो एक ही समय तथा एक ही स्थान पर पैदा होते हैं) के उपर शोध करवाया गया।
उनकी जन्म पत्री एक ही थी। भविष्यवक्ताओं से फलादेश के लिए कहा गया। इसके परिणाम के बारे में डॉ. डीन का कहना था
परिणाम फलित ज्योतिष की अवधारणा के विरुद्ध पाये गये।
5. ज्योतिषियों की भविष्यवाणी से क्या संसार भर में हो रही दुर्घटनाओं से कोई बच सका है?उŸार नकारात्मक ही है।
6. जब ग्रहों की गति आदि अपरिवर्तनीय है तो जन्म कुण्डली तथा तदाधारित फलादेश भी अपरिवर्तनीय ही होगा। जब
अपरिवर्तनीय ही है तो उसे जानकर क्या लाभ?और यदि किसी क्रिया,कर्मकाण्ड से अशुभ फल शुभ में बदल जाय तो यह
मानना पड़ेगा कि कुण्डली जिन ग्रहों पर आधारित है उन ग्रहों की गति आदि भी परिवर्तनीय है। साथ ही परमेश्वर की
कर्म-फल व्यवस्था भी।
तथ्य यह है कि इस व्यापार में संलग्न फलित ज्योतिषी सब कुछ ठीक-ठाक करने का दावा करते हैं, वह भी गारण्टी के साथ।
कुण्डली पुत्र
विनायक वास्तु ऐस्ट्रो शोध संस्थान के पंडित दयानन्द शास्त्री दावा करते हैं कि डाक्टर तो जब रोग आवेगा तब बता सकेगा।
परन्तु ज्योतिषी कई वर्ष पूर्व आपको कब कौनसा रोग होगा इसकी चेतावनी दे देगा। इसका अर्थ यह हुआ कि सरकार व्यर्थ ही
लाखों करोडों़ रुपये का स्वास्थ्य बजट बनाती है। अतः इन लोगों के अनुसार तो मेडिकल कॉलेज तथा अस्पतालों की
आवश्यकता ही नहीं है। क्योंकि ज्योतिषी न केवल जीवन बाधाओं को बताता है वरन् इन बाधाओं के निवारण का अचूक
उपाय भी आपको बता देता है। इनका कहना है कि जो व्यक्ति भरपूर मेहनत पर भी सफल नहीं होते वे सब दुर्याग जन्म पत्री
से जाने जाते हैं और इन दुर्यागों को दूर भी किया जा सकता है- जैसे रत्न धारण,हवन-यज्ञ, ग्रहों का दान, ग्रहों के मंत्र
जाप,ग्रहों के यंत्र-धारण आदि के द्वारा।
इनके विज्ञापन का एक नमूना देखें-
‘कैसा होगा आपका जीवन साथी?घर कब तक बनेगा?नौकरी कब तक लगेगी?सन्तान प्राप्ति कब तक?
जानें व करें बाधा को दूर करने का उपाय। लाभ गारण्टेड।
अर्थात् जन्मपत्री आपके भाग्य की द्योतक है। ओर विशेष उपायों द्वारा दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदला जा सकता है। दूसरे शब्दों
में समय-विशेष पर उत्पन्न एक बालक अतीव भाग्यशाली हो सकता है तो दूसरे समय में उत्पन्न भाग्यहीन व विपन्न। अब
आरम्भ होती है मूर्खता की पराकाष्ठा। उपरोक्त अंधविश्वास से भ्रमित तथाकथित रूप से प्रगतिशील, उच्चशिक्षायुक्त,
उच्चवर्गीय समाज में अवस्थित लोगों के मन में ‘कुण्डली-पुत्र’ पैदा करने का विचार स्फुरित होता है। जब जीवन के हर क्षेत्र
में सफलता की गारन्टी जन्म के समय की ग्रह दशाओं से होती है तो क्यों न ऐसा समय निर्धारित किया जावे कि जिस समय
की ग्रहों दशा ऐसी हों कि उनमें जन्मे बालक के जीवन में सब कुछ अच्छा ही अच्छा हो, बुरा हो ही नहीं। ज्योतिषी जी की सेवा
कर ऐसा समय निकलवाने के पश्चात् अब प्रारम्भ होता है विज्ञान के दुरुपयोग का दौर। स्पष्ट है कि सामान्य प्रसव में समय
आपके नियंत्रण में नहीं रहता। इसका एक ही समाधान है ‘सीजेरियन’ अर्थात् शल्य क्रिया द्वारा बच्चे के जन्म देना।
कुण्डली पुत्र के अभ्यर्थियों की मानसिकता दोहरी होती है। यदि ज्योतिषी के फल-कथन और उसके निवारण-सामर्थ्य पर पूर्ण
विश्वास होता तो सीजेरियन क्यों कराते? ये लोग विज्ञान की देहलीज पर भी खड़े हैं। अतएव फलित ज्योतिष परक अभिलाषा
की वैज्ञानिक पूर्ति हेतु सीजेरियन की सहायता ले अकारण प्रसूता को सर्जरी के खतरे में डालते हैं। ऐसी मनःस्थिति पर रोवें या
हँसें? क्या संसार में एक भी व्यक्ति ऐसा है जिसके जीवन में सुख ही सुख हो दुःख का लेश मात्र भी न हो। महात्मा बुद्ध को
यह फार्मूला ज्ञात होता तो संसार को दुःख का घर न कहते।
वस्तुतः व्यक्ति को सुख व दुःख अपने किए गए शुभ-अशुभ कार्यां के आधार पर मिलते हैं न कि जन्म-समय की ग्रहदशा के
आधार पर। जन्म के पश्चात् भी ग्रह व्यक्ति का भाग्य निर्धारण कर सकें यह विचार ही व्यर्थ है। महर्षि दयानन्द अपने ग्रन्थ
सत्यार्थ प्रकाश में स्पष्ट लिखते हैं- ‘ग्रह जैसी यह पृथिवी जड़ है, वैसे ही सूर्यादिलोक हैं। वे ताप और प्रकाशादि से भिन्न कुछ
भी नहीं कर सकते, क्या ये चेतन हैं जो क्रोधित होके दुःख और शान्त होके सुख दे सकें?’अतः प्रथम तो यह कि जड़ ग्रहादि
मानव के भाग्य के निर्धारक नहीं हो सकते। द्वितीय यह मान भी लिया जाय कि जन्म के समय के नक्षत्रादि पर जातक का भाग्य
टिका है तो यह सम्भावना तो बिल्कुल नहीं है कि विभिन्न उपायों से बचाव या समाधान फलित ज्योतिषी जी कर सकते हैं। वेद
में तो अत्यन्त स्पष्ट रूप से कहा है-
न किल्विषमत्र नाधारो अस्ति न यन्मित्रैः समममान एति।
अनूनं पात्रं निहितं न एतत्पक्तारं पक्वः पुनरा विशाति।। -अथर्ववेद 12.3.48
‘अर्थात् इस कर्मफल में कुछ भी न्यूनाधिक नहीं होता। न ही कोई सिफारिश चलती है। न यह कि किसी मित्र (पण्डित,
ज्योतिषी आदि) के साथ गति की जा सके। हमारा यह कर्मों का पात्र, जैसा और जितना हमने भरा है, बिना घट-बढ़ के ही
रहता है। अपना पकाया हुआ ही पकाने वाले को पुनः आ मिलता है।’ इसी को साधारण भाषा में कहा है- ‘जो जैसा करता है
वैसा भरता है’ अथवा ‘बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय’ इत्यादि
स्वामी दयानन्द जी महाराज ने ‘जन्म-पत्र’ को ‘शोक-पत्र’ इसीलिए कहा कि जब बालक/बालिका का जन्म होता है तो
परिवार में प्रसन्नता का वातावरण छा जाता है। कल का दिन उसके लिए कैसा हेगा, आगे क्या शारीरिक, मानसिक रोग
आवेंगे पता नही। नियमपूर्वक आहार-विहार, पूर्ण परिश्रम कर्तव्य कर्म हैं जिससे हमारी अपनी त्रुटि से हम रोगग्रस्त न हों,
असफल न हों।
परन्तु यह प्रसन्नता तब उड़नछू हो जाती है जब ज्योतिषी जन्म-पत्र बनाता है। वह जितना जितना अच्छा फलादेश सुनाता है
सभी प्रसन्न होते हैं परन्तु जैसे ही अशुभ फल सुनाता है सभी शोकमग्न हो जाते हैं तथा उस अशुभ को दूर करने की इच्छा से
मूर्खतापूर्ण अंधविश्वास के मकड़जाल में फँसते चले जाते हैं,जिससे कभी नहीं निकल पाते। इसमें उन पर जो संस्कार पड़ गये
हैं कि ज्योतिष द्वारा सब कुछ जाना जा सकता है तथा आसन्न संकट का उपाय भी कुछ कर्मकाण्डों द्वारा किया जा सकता है,
सहयोगी होता है। अतएव महर्षि दयानन्द बचपन से ही बालक ऐसे संस्कारों से परे रहे,ऐसा प्रयत्न माँ-पिता करें, यह विधान
करते हैं।
अंधविश्वास आज नये नये प्रकारों में, नई तकनीकों के कन्धे पर चढ़कर घर-घर में पैर पसार चुका है। इससे मानवता को
बचाना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। वस्तुतः वर्तमान समय में विज्ञान ने कितनी भी प्रगति कर ली हो, शिक्षा का कितना भी
प्रचार-प्रसार हुआ हो परन्तु ‘तर्कऋषि’ की प्रतिष्ठा इस रूप में नहीं हो पाई है कि व्यक्ति कार्य कारण संबंधों पर
विश्लेषणात्मक विवेचन कर सके। विज्ञान के आविष्कार इस धन्धे के फलने फूलने में सहायक हो गए हैं। पहले व्यक्ति कम से
कम मंदिर जाने का कष्ट तो उठाता था पर आज दर्शन, पूजा, प्रसाद-वितरण सब ऑन लाइन हो रहे हैं।
वस्तुतः जब तक कर्म-फल सिद्धान्त तथा ईश्वर की न्यायकारिता के सम्बन्ध में दृढ़ निश्चय न हो जायेगा, ऐसे दुकानदारों की
दुकानदारी चलती रहेगी। पूज्य स्वामी विद्यानन्द जी सरस्वती ने स्वलिखित ‘सत्यार्थ भास्कर’ में कुछ प्रसिद्ध फलित ज्योतिषियों
का उल्लेख किया है,जिनके फलादेश अपने ही परिवार के संदर्भ में असत्य निकले,फलतः उन्होंने यह मिथ्या-धंधा बन्द कर
दिया। एक उदाहरण है। महामहोपाध्याय की उपाधि से विभूषित पंडित सुधाकर द्विवेदी सबसे बड़े ज्योतिषी माने जाते थे। वे
काशी के गवर्नमेण्ट संस्कृत कॉलेज में ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष और एतद् विषयक अनेक ग्रन्थों के रचयिता थे। उनके यहाँ
एक कन्या का जन्म हुआ। उसका जन्म समय आदि लिखकर उन्होंने अपने अनेक मित्रों तथा शिष्यों से बिटिया की जन्म पत्री
बनवाई। स्वयं ने भी बनाई। सबका फलादेश था कि कन्या का सौभाग्य अटल रहेगा। परन्तु विवाह के 6 महीने के अन्दर ही
उनकी लाडली विधवा हो गई। तबसे वे फलित ज्योतिष के प्रबल विरोधी हो गये। (सत्यार्थ-भास्कर) पंडित बलदेव प्रसाद
सिन्धिया सरकार,पंडित सूर्यनारायण व्यास के साथ भी ऐसा ही हुआ। आएँ, फलित-ज्योतिष की वास्तविकता पर गम्भीर
वैज्ञानिक दृष्टि से चिन्तन करें।
आत्म
निवेदन फरवरी 2013