साधु या शैतान
इतिहास गवाह है कि असत्य और पाखण्ड के विरुद्ध आवाज उठाने वालों ने, सत्य को उद्घाटित करने वालों ने न केवल विरोध सहा है बल्कि अपनी शहादत भी दी है। सुकरात, गैलीलियो तथा ब्रूनो इसके प्रमाण हैं। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती का तो सारा जीवन ही पाखण्ड-विरोध के कारण स्वार्थी तत्त्वों के निशाने पर रहा। उन्होंने अपने जीवन में क्या-क्या नहीं सहा? यहाँ तक कि अनेक बार विषपान भी करना पड़ा। अन्ततोगत्वा उनका प्राणान्त भी ऐसे ही षड्यंत्र के कारण हुआ। अभी हाल में अन्धविश्वास निर्मूलन समिति के संस्थापक अध्यक्ष श्री डाभोलकर की भी ऐसे ही ढोंगी व स्वार्थी लोगों द्वारा हत्या कर दी गई। हरियाणा की धरती पर भी धर्म और आस्था के नाम पर पाप, अधर्म और आतंक का साम्राज्य स्थापित किया जा रहा था। पर कोई भी, यहाँ तक कि हरियाणा सरकार तथा प्रशासन भी आँखें मूँदे रहा। रामपाल नाम के शैतान ने साधु के वेश में 1999 में करौंथा में सतलोक आश्रम की स्थापना की। इसके लिए भूमि भी षड्यंत्र द्वारा प्राप्त की गई। भोले-भाले श्रद्धालुओं की आस्था का दोहन कर देखते-देखते विशाल भवन तैयार हो गया। निर्माण इस प्रकार कराया गया कि अन्दर क्या हो रहा है किसी को पता न चले। भक्तों के नाम पर अपराधी तत्व तथाकथित आश्रम में पनाह लेते रहे। रामपाल और इनके जैसे (अ) धर्मगुरु किस प्रकार लोगों की आँखों पर पट्टी बाँधने में सफल हो जाते हैं कि उन्हें अपने चारों ओर गलत कार्य होते हुए भी गलत नहीं दिखते यह आश्चर्य का विषय है। प्रशासन धर्मस्थल होने के नाते छानबीन का साहस नहीं रखता। और ऐसे आश्रम अपराधियों की पनाहगाह बन जाते हैं। कुछ वर्ष पूर्व आसाराम बापू के स्टिंग आॅपरेशन में यह तथ्य उजागर हुआ था कि वे भी अपराधियों को बेधड़क अपने यहाँ शरण देते थे। यह वीडियो आज भी यू-ट्यूब पर उपलब्ध है। रामपाल के गढ़ में भी नक्सली पनाह लेते थे। पुलिस ने भगत जी के नाम से आश्रम में रह रहे एक नामजद नक्सली को गिरफ्तार किया था। रामपाल पर नरबलि देने के भी आरोप हैं। रामपाल के खिलाफ जिला जीन्द के नरवाना थानान्तर्गत गाँव दबलैण निवासी हरिकेश ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी जिसमें आरोप था कि रामपाल ने उसके 32 वर्षीय पुत्र रणधीर की बलि देने हेतु 21 अगस्त 2014 में हत्या की थी। रामपाल ने हरियाणा में तीन सतलोक आश्रम स्थापित किए थे। 1999 में रोहतक के करौंथा, 2001 में हिसार के वरवाला और इसी इलाके में एक अन्य आश्रम बनाया। धीरे-धीरे ये आश्रम अय्याशी व आतंक के अड्डे बन गए। वरवाला के सतलोक आश्रम के अन्दर अब जाकर पुलिस घुस पायी तो स्तब्ध रह गयी। महिलाओं के टायलेट में कैमरे, आश्रम में मिले प्रेग्नेन्सी किट तथा कन्डोम अपनी कहानी स्वयं कह रहे हैं। अपने आप को सन्त कहने वाला यह व्यक्ति अपने साथ सैंकड़ों कमाण्डो क्यों रखता था? जैसा कि कहा जा रहा है मध्यप्रदेश के बैतूल स्थित आश्रम में इसके रिश्तेदार कमाण्डो को हथियार चलाने की ट्रेनिंग क्यों देते थे, ये कमाण्डो क्यों तैयार किए जा रहे थे? आश्रम में भारी मात्रा में अत्याधुनिक हथियार, पेट्रोल बम व अन्य हथियार क्या कर रहे थे यह चिन्त्य है। ऐसे अय्याश व आतंकी के विरुद्ध जब पूरा प्रशासन मौन था तब आर्य समाज ने आवाज उठाई तथा मुखर विरोध किया। पर सदैव की भाँति असत्य का पर्दाफाश करने की कीमत आर्य समाज को भी चुकानी पड़ी। सन् 2013 मंे आर्य समाज के अहिंसक प्रदर्शन पर आतंकी के वार के फलस्वरूप संदीप आर्य तथा आचार्य उदयवीर को अपना बलिदान देना पड़ा। यूँ तो अनेक बाबाओं के कारनामे उजागर हुए, वे गिरफ्तार भी हुए, अन्ध भक्तों ने विरोध भी किया पर ऐसा कभी देखा-सुना नहीं गया जैसा रामपाल को गिरफ्तार करने में हुआ। हरियाणा की 40,000 पुलिस भी बेबस हो गयी। आश्रम से बाकायदा गोलीबारी की गई। 6 व्यक्तियों की मौत और 200 लोग घायल हुए। चार महिलाओं के शव आश्रम के स्टाफ ने पुलिस को सौंपे। ये महिलाएँ आश्रम में कैसे मरीं! यह भी प्रश्न है। रेपिडएक्शन फोर्स ने अन्ततोगत्वा मोर्चा सँभाला तब चूहा अपने बिल में अन्तिम गहराई तक अर्थात् तहखाने में छिपा मिला। यह है तथाकथित धर्मगुरु की हकीकत। अभी तो और तथ्य सामने आने वाले हैं। इस एक गिरफ्तारी में कुल 40 करोड़ रु. खर्च हो गए। रामपाल के खिलाफ धारा 121 के अंतर्गत अर्थात् भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने का आरोप लगा है। 121 ए, 122, 123 भी राष्ट्रद्रोह से संबंधित हैं। इस प्रकार एक और धर्मगुरु का पर्दाफाश हुआ। आर्य समाज के जांबाजों का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। कहते हैं समय बदलते देर नहीं लगती। करीब 6 माह पूर्व 14 जुलाई को हिसार की कोर्ट में जब रामपाल आया था तब उसके हजारों समर्थकों ने हिसार को जैसे बन्दी बना लिया था। जगह-जगह रामपाल की जय जयकार हो रही थी। लेकिन करोड़ों के आश्रम में शहंशाह की तरह रहने वाला रामपाल आज 20,000 रुपये के लिए भी तरस गया। हिसार कोर्ट ने रामपाल के विरुद्ध थ्प्त् 427 में 20 हजार के बाण्ड साधु या षैतानपर जमानत का आदेश दिया पर आज अरबों के मालिक, लाखों के चहेते रामपाल के पास एक व्यक्ति नहीं था जो उसकी जमानत के लिए 20,000 का बाण्ड भरे। परन्तु एक शाश्वत प्रश्न अभी भी उपस्थित है। हमने पहले भी लिखा था, आज भी यही प्रश्न उपस्थित है। रामपाल को जन, धन, बल किसने दिया? शास्त्रों व धर्म के मर्म से सर्वथा अनजान रामपाल इतना समर्थ, धनवान व प्रभावशाली कैसे बना? उत्तर बुरा लग सकता है पर है कटु सत्य- हमारी अपनी मूढ़ता से। आपने कभी कृष्णावतार नाम के बाबा का नाम सुना होगा जो अब जेल की हवा खा रहा है। वह अपने पीकदान में पान की पीक थूँकता था भक्तगण उसे प्रसादरूप ग्रहण करते थे। है न मूर्खता की पराकाष्ठा। ऐसा ही रामपाल भी करता था। बताया जाता है कि वह दूध से नहाता था तथा इस दूध की खीर बनती थी। यह खीर बड़ी चमत्कारी बताई जाती थी तथा प्रसादरूप बाँटी जाती थी। जिसे सुनकर-पढ़कर भी जिगुप्सा प्रतीत होती है वैसा जब हजारों लाखों द्वारा प्रसन्नतापूर्वक किया जाता है तब रामपालों का पाशविक बल वृद्धि को प्राप्त होता है। अतः यदि रामपालों के निर्माण की फैक्ट्री बन्द करनी है तो ‘विवेक’ की शरण में जाना ही होगा। अन्य कोई मार्ग नहीं है।