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Satyarth Prakash Nyas / सम्पादकीय  / अच्छे दिन आने वाले ह

अच्छे दिन आने वाले ह

ेश का राजनीतिक परिदृश्य, राजनीतिक दलों के चरित्र, उनकी चाल-ढाल, उनके क्रियाकलाप, किए हुए ऐसे वायदे जिन पर उन्हें कभी अमल करना ही नहीं था ने बीसियों सालों से मतदान प्रक्रिया को कम से कम मेरे लिए महज औपचारिक बना दिया था। कुछ समय पूर्व कुछ लोगों ने सच्चाई और ईमानदारी के नाम पर राजनीति में जबरदस्त हलचल उत्पन्न की। चौंककर लोगों ने उनकी ओर देखा। आशा भी लगाई, समर्थन भी दिया। परन्तु अतिमहत्त्वाकांक्षा के चलते वे पानी का बुलबुला ही सिद्ध हुए। परन्तु इस बार के लोकसभा चुनावों में ऐसा नहीं था। एक जननायक का ऐतिहासिक उदय राष्ट्रीय क्षितिज पर हुआ। उसके पास कोरी लफ्फाजी नहीं थी। उसने राज्य के स्तर पर अपने को सिद्ध किया था। सबसे बड़ी बात राजनेताओं के ऊबाऊ भाषणों और खोखले वायदों/दावों वाले वक्तव्यों के चलते उन्हें सुनने की तीव्र अनिच्छा रखने वाले मेरे जैसे अनेक व्यक्तियों को उन्होंने उन्हें सुनने को मजबूर कर दिया। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में संभवतः सबसे लम्बे चुनावों में इनके भाषणों को निरन्तर सुनते-सुनते, इनके आत्मविश्वास से लबरेज साक्षात्कार देखते-देखते, सोशल मीडिया, टेलीविजन, एफ. एम.रेडियो पर ‘अबकी बार मोदी सरकार’, ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ सैंकड़ों हजारों बार सुन-सुनकर भी न जाने क्यों बोरियत नहीं हुई बल्कि दिल-दिमाग ने उनके ‘दिल माँगे मोर’ से तारतम्य स्थापित कर लिया। ऐसा क्योंकर हुआ? मुझे ऐसा लगता है कि अपनी बात कहते समय मोदी जी की स्पष्टता, आँखों में झलकती सच्चाई तथा ईमानदारी और आत्मविश्वास ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया। हमारे देश में सम्पादक वर्ग बुद्धिजीवी कहलाता है। मुझे लगता है कि इनकी जमात में वही शामिल हो सकता है जो अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए बनाई गई ‘साम्प्रदायिकता’ तथा धर्म-निरपेक्षता’ की छद्म परिभाषा की वकालत करता हो। इस कीमत पर अपने को बुद्धिजीवी साबित करने हेतु इस जमात का सदस्य बनना मुझे कभी स्वीकार्य नहीं रहा। अतः म्गपज चवसस से लेकर 15 मई तक टीवी चैनलों पर चल रही चर्चा विशेष आकर्षण का विषय मेरे निकट नहीं बन सकी। वहांँ पूर्वाग्रह साफ नजर आ रहे थे।
निर्वाचन-परिणामों ने सभी पूर्वानुमानों को ध्वस्त कर दिया। मैं चुनाव-विश्लेषक तो नहीं पर मुझे लगता है इस ऐतिहासिक जीत के कई कारण रहे। उत्तरप्रदेश तथा बिहार जैसे बड़े राज्यों में जहांँ जातिगत समीकरण राजनीति को जटिल बना देते हैं वे समीकरण भी ध्वस्त हुए। 10 से लेकर 12 प्रतिशत जो अधिक वोटिंग हुई वह मोदी से देश की जनता की आशाओं का प्रतिबिम्ब है जिसने उनकी उदासीनता को भंग किया। एक और प्रमुख कारण युवा वोटर की सक्रियता जिसने निर्विवाद रूप से मोदी में इच्छाओं की पूर्ति का माद्दा देखा। इस सबसे बढ़कर 2014 के चुनावों में प्रधानमंत्री के पद के जितने दावेदार थे जब उनका तुलनात्मक विश्लेषण किया जाय तो वे मोदी के पास भी खड़े नहीं दिखते। जनता मनमोहन जी का 10 वर्षीय कार्यकाल देख ही चुकी थी जिसके खिलाफ गहरा आक्रोश था। कांग्रेस पार्टी का मात्र 44 सीटों पर सिमट जाना इसका प्रमाण है। मोदी ने अपने चुनावी अभियान में तीन लाख कि.मी.की यात्रा की, सहस्रों रैलियों को सम्बोधित किया, नई तकनीक 3क् होलोग्राम का उपयोग कर लाखों करोड़ों लोगों को सम्बोधित किया। कहते हैं कि यह विश्व रिकार्ड बन गया है। यह सत्य है कि ऐसा लगता था कि नरेन्द्र मोदी ऊर्जा का अजस्र स्रोत हैं। थकान उनके चेहरे पर दिखी नहीं। खास बात यह है कि अपनी ओर से चलाकर नरेन्द्र मोदी ने अपने उद्बोधनों को जातिवादी व साम्प्रदायिक सोच से मुक्त रखा। विकास व सुशासन उनके भाषणों के केन्द्र में रहा। परिणामों में स्पष्ट परिलक्षित हुआ है कि जनता ने उनकी बातों पर भरोसा किया है कि ‘अच्छे दिन आने वाले हैं।’ आजादी के बाद भारतवर्ष में जिस तरह का राजनीतिक वातावरण बना दिया गया उसमें अल्पसंख्यकचाद व जातिवाद रूपी विष ने लोकतंत्र को विनष्ट जैसा कर दिया था। परन्तु 16 वीं लोकसभा में मोदी जी की जीत में ऐसे सभी विनाशक तत्व पराभूत हुए विश्लेषण से यह साफ है।
तो भारत को एक ईमानदार, ऊर्जावान, विचारवान, राष्ट्रभक्त प्रधानमंत्री मिल गया। परन्तु मोदी जी की सबसे बड़ी समस्या यह रहेगी कि वे जनता की असीम आकांक्षाओं के रथ पर सवार होकर आए हैं। उनसे जादू की आशा की जावेगी जबकि असल जिन्दगी में जादू होते नहीं। अतः मोदी को प्रथम दिन से ही यह पारदर्शिता के साथ दिखाना होगा कि अच्छे दिनों की शुरूआत हो चुकी है। उन्हें दिखाना होगा कि अगर वे भ्रष्ट राजनीतिक परिदृश्य में अलग हैं, तो किस प्रकार? मेरा अपना विचार है कि उनके क्रियाकलापों की आधार रेखा उन्हीं के वक्तव्यों में देखी जा सकती है। उनके उद्बोधनों की अच्छे दिन आने वाले हैं
जिन पंक्तियों ने मुझे प्रभावित किया वे इस प्रकार हैंः-
1. न मैं किसी की टोपी पहनता हूँ न किसी को पहनाता हूँ। और किसी की टोपी किसी को उछालने भी नहीं दूँगा। मैं अपनी परम्पराओं का पालन करता हूँ, दूसरों की परम्पराओं का सम्मान करता हूँ। 2. न मैं आँख दिखाने में विश्वास रखता हूँ, न आँख झुकाकर बात करने में। मैं आँख मिलाकर बात करने में विश्वास रखता हूँ।
3.कुछ लोगों को तो मुझसे डरना पड़ेगा। जो भ्रष्टाचारी हैं, जो बेइमान हैं…….। 4.कानून अपना कार्य करेगा। बदले की भावना से कोई कार्यवाही नहीं की जावेगी। 5.मैं चाहता हूँ कि जितने भी सांसद हैं, थ्ेंज जतंबा बवनतज द्वारा एक वर्ष के अंदर उन पर निर्णय आवे। 6. जो मुझसे दूर हैं वे भी जब मोदी को जानेंगे तो प्यार करने लग जावेंगे।
7. चुनाव प्रचार समाप्ति पर दिया गया मोदी जी का सन्देश एक ऐसे नेता के व्यक्तित्व को निरूपित करता है जो भारत जैसे विविध पृष्ठभूमि वाले नागरिकों के राष्ट्र के प्रमुख के रूप में उन्हें सक्षम स्वरूप में स्थापित करता है- इस संदेश की रेखांकित पंक्ति है..‘अब राजनीति के ऊपर जनता, निराशा के ऊपर आशा, बहिष्करण के ऊपर समावेशन और विभेद के ऊपर विकास को तरजीह देने की जरूरत है।’
16 मई की ऐतिहासिक विजय के पश्चात् बड़ौदा रैली में 17 मई को मोदी जी ने जो कहा उसमें से दो बिन्दु उद्धृत करना चाहूँगा- ‘सबका साथ-सबका विकास’ तथा ‘यह सरकार सवा सौ करोड़ देशवासियों की है।’ यह सब इस जननायक की मनःस्थिति को दर्शाता है कि उनका दायित्व केवल उन तक सीमित नहीं है जिन्होंने उन्हें वोट दिए वरन् उन सब तक विस्तरित है जिन्होंने उनको मत नहीं दिए वरन् उन तक भी जो उनके घोर विरोध में खड़े हैं। यही एक जननायक की ेचपतपज होती है। मोदी जी अपार उम्मीदों की लहर पर सवार होकर आए हैं अतः उनके ताज को काँटों का ताज भी कहा जा सकता है। राज्य का प्राथमिक दायित्व देश की आन्तरिक तथा बाह्य आक्रमणों से सुरक्षा है। राज्य नामक संस्था का जन्म भी इसी हेतु से हुआ है। अतएव सर्वप्रथम इसे सुनिश्चित करना मोदी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। जन कल्याणकारी राज्य का नम्बर अब आता है। भ्रष्टाचार पर प्रहार तो तुरन्त ही दिख जाना चाहिए। लोकपाल, आर.टी.आई. व्हिसिल ब्लोअर जैसे उपयोगी यन्त्रों को बल प्रदान करना चाहिए। मोदी जी ने एक बात कही थी, जो आज तक किसी नेता ने नहीं कहीं, वह यह कि ‘सांसदों के ऊपर जो मुकदमे लम्बित हैं उन पर निर्णय, फास्ट ट्रेक न्यायालयों के माध्यम से एक वर्ष में लाया जावेगा।’ यह आसान नहीं है क्योंकि इस कार्य में निष्पक्ष होना होगा। अनेक दबाव आयेंगे, आलोचना होगी, पर मोदी जी यह कर सकते हैं। केवल यह एक कार्य ही उन्हें अब तक के सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री की श्रेणी में ला खड़ा करेगा। तभी अच्छे दिन आने की शुरूआत होगी और शायद देश की जनता यह भी कहने लगे- ‘हर बार मोदी सरकार’।