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Satyarth Prakash Nyas / सम्पादकीय  / तकनीक का दुरुपयोग बनाम सदुपयोग

तकनीक का दुरुपयोग बनाम सदुपयोग

मनुष्य जो कुछ भी आविष्कार करता है उसके बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि वह गलत है या सही। तकनीक अपने आप में न बुरी होती है न अच्छी। यह तो उपयोगकत्र्ता के ऊपर निर्भर करता है कि वह उस तकनीक का अपने और मानव समाज के कल्याणार्थ प्रयोग करता है अथवा विनाश के लिए। जैसे चाकू का प्रयोग सब्जी काटने के लिए भी किया जा सकता है तथा किसी का खून करने के लिए भी। आज इन्टरनेट के आविष्कार ने दुनिया ही बदल दी है। जानकारी प्राप्त करने तथा संचार के क्षेत्र में क्रान्ति आ गयी है, आप एक ‘कीवर्ड’ गूगल पर डालिए और असीमित जानकारी आपके समक्ष होगी। अगर समुचित प्रयोग किया जाय तो कम्प्यूटर वरदान है। कागज का उपयोग कम से कम किया जा रहा है, जो हमारी लकड़ी की आवश्यकता कम कर देगा फलस्वरूप पेड़ों की कटाई में कमी आवेगी। पढ़ाने के तरीके में व्यापक उन्नत परिवर्तन हुए हैं। संसार भर की नाना विषयों की जानकारी आपके एक इशारे पर उपलब्ध है। यहाँ तक कि व्यापार का तरीका भी बदलता जा रहा है। अब आपको कड़ी धूप में अपनी आवश्यकता की वस्तु तलाशने के लिए हैरान होने की आवश्यकता नहीं है, सब कुछ बिकने के लिए आॅन-लाइन बाजार में उपलब्ध है।
पर यहाँ सब कुछ अच्छा ही अच्छा नहीं है। अश्लीलतम साहित्य बिना रोकथाम के सबको उपलब्ध है। सर्वे बताते हैं कि 60 प्रतिशत यूजर्स इन्हीं वेब-साइटों में भ्रमण करते रहते हैं जो कि स्पष्टतः सांस्कृतिक व नैतिक अधःपतन की जिम्मेदार हैं। इन्हें प्रतिबन्धित करना भी आसान नहीं है। सोशल मीडिया (फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्विटर आदि) ‘कनेक्टिंग’ के साथ अफवाहें फैलाने, गालियाँ देने , भड़ास निकालने के प्लेटफार्म भी बन गए हैं। कुल मिलाकर बात यही है कि इनका लाभ या नुकसान उपयोगकत्र्ता के ऊपर निर्भर है। यहाँ ऐसी साइटें भी हैं जो ‘आनंद लेकर कैसे आत्महत्या की जाय’, यह भी सिखाती हैं। कुछ वर्ष पूर्व मुम्बई में एक छात्र की आत्महत्या के पीछे ऐसी ही एक साईट का हाथ था।
अब पूरे विश्व के समक्ष एक चुनौती पैर पसार रही है वह है इण्टरनेट का अत्यधिक प्रयोग। जैसे शराब आदि का नशा व्यक्ति को व्यसनी बना देता है यही कार्य अब संचार के ये आकाशीय साधन कर रहे हैं। चीन में विद्यार्थियों ने विद्यालय जाना छोड़कर साइबर कैफे का रास्ता अपना लिया है। वहाँ इस लत को छुड़ाने हेतु शिविर लगाये जा रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि तकनीक के ज्यादा इस्तेमाल के कारण लोगों में अर्ध-अनिद्रा की स्थिति तेजी से बढ़ रही है। लोगों की थकान से सम्बन्धित परेशानियों को दूर करने वाली एक सलाहकार संस्था ‘द एनर्जी प्रोजेक्ट’ के अध्यक्ष जीन गोम्स ने कहा कि हमने 30000 पीड़ितों पर पाँच साल तक शोध किया, संभवतः तकनीक ही इसका प्रमुख कारण है। अस्तु।
इण्टरनेट की तकनीक व ऐसी ही अन्य तकनीकों के दुरुपयोग के अनेक उदाहरण सामने आते रहते हैं। अपराधों में अत्याधुनिक तकनीक का प्रयोग होने लगा है। आपने फिल्म ‘मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस.’ देखी होगी। उसमें ब्ल्यूटुथ का प्रयोग कर एक अनपढ़ को डाॅक्टरी की परीक्षा में उत्तीर्ण कराया गया था। पता नहीं इसी फिल्म से प्रेरणा लेकर या स्वतः उपजी दुर्बुद्धि से प्रवेश परीक्षाओं में ऐसी तकनीकों के दुरुपयोग से प्रवेशार्थियों को सफल कराने की बाढ़ ही आ गयी है। जब तक ये मामले खुले तब तक न जाने कितने मुन्नाभाई डाॅक्टर तथा इंजीनियर बन गए। एक प्रदेश की एक परीक्षा हो तो हम गिनाएँ। मध्य प्रदेश के व्यापमं घोटाले ने सर्वाधिक ख्याति प्राप्त कर ली। राजस्थान भी कोई पीछे नहीं रहा। यहाँ ब्ल्यूटुथ सहित विशेषरूप से तैयार किये गए वायर्ड अंडर गारमेंट्स का उपयोग किया गया। जब पोल खुलने लगी तो परीक्षाएँ रद्द होने लगीं। ऐसी स्थिति में बिना कोई अपराध मेहनती विद्यार्थियों के साथ क्या बीतती है ये तो वही जानते हैं। पूरी तैयारी के साथ ऐसे परीक्षार्थी हर समय इस आशंका से ग्रसित रहते हैं कि न जाने कब परीक्षा रद्द होने के आदेश आ जावें। 2015 की आल इंडिया मेडिकल टेस्ट परीक्षा, नकल प्रकरण के कारण उच्चतम न्यायालय ने रद्द कर दी। दिल्ली विश्वविद्यालय के मुक्त विद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया, राजस्थान विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग तथा डेंटल एंट्रेन्स में पेपर लीक हुए।
यह तकनीक के दुरुपयोग की इंतहा थी। पर अब तकनीक का सहारा लेकर ही प्रशासन इस स्थिति से निबटने की तैयारी कर रहा है। परीक्षा केन्द्रों पर ‘मोबाइल जेमर’ लगाने के बारे में सोचा जा रहा है ताकि ऐसे उपकरण काम ही न कर सकें। यद्यपि लगभग पूरे विश्व में जेमर का उपयोग गैरकानूनी है पर यूक्रेन में विद्यालयों में इसके प्रयोग की इजाजत है।
तकनीक का दुरुपयोग बनाम सदुपयोगअब बड़ी-बड़ी परीक्षाओं में आॅनलाइन परीक्षा का प्रस्ताव है। ‘इम्परसोनेशन’ को रोकने के लिए फिंगर प्रिंट्स लेने का इंतजाम किया जा रहा है। आॅनलाइन परीक्षा में भी प्रश्न-पत्रों के कई पेपर सेट तैयार होंगे। परीक्षा शुरू होने के आधा घंटे में भी खबर मिलेगी कि प्रश्नपत्र लीक हो गया है तो दूसरा पेपर सेट दे दिया जावेगा। परीक्षार्थियों के प्रश्नपत्रों में प्रश्नों का क्रम भिन्न-भिन्न होगा आदि-आदि। दिलचस्प बात यह है कि नकल की ये समस्या केवल भारत में ही नहीं है चीन भी इस समस्या से जूझ रहा है। वहाँ की परीक्षा ‘गाओकाओ’ जिसमंे 90 लाख विद्यार्थी बैठते हैं, में केवल ‘स्पायी बनियान’ ही नहीं ‘स्पायी चश्मे’ तथा ‘स्पाई पर्स’ का भी इस्तेमाल किया गया है।
वहाँ तो ड्रोन और सी. सी. टी. वी. की सहायता से नकल रोकने का इंतजाम किया जा रहा है। आस्ट्रेलिया के दो विश्वविद्यालयों ने स्मार्ट घड़ियों को परीक्षा कक्ष में ले जाना निषिद्ध कर दिया है। अब ड्रोन का सहारा लेने की योजना बनायी जा रही है । हावर्ड विश्वविद्यालय में पहली बार पृथक् से शपथ लेने का प्रावधान किया जा रहा है कि वे चीटिंग नहीं करेंगे। तकनीक के सफल व सही स्थल पर प्रयोग के भी अनगिनत उदाहरण हमारे समक्ष हैं।
एक नया सूचना तंत्र ट्विटर तेजी से फैल गया है। अभी हाल में रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने इसका सही उपयोग कर अनेक जरूरतमंदों को सहायता पहुँचायी है। एक ट्रेन को किसी कारणवशात् कई घंटे रुकना पड़ा, उसमंे सैंकड़ों छात्र भूखे-प्यासे थे। ट्विटर पर खबर मिलते ही मंत्री जी ने आश्चर्यजनक तेजी के साथ सारा प्रबन्ध करा दिया। एक शहर की दो लडकियाँ घर छोड़ अनजान यात्रा पर निकल पड़ीं। लड़की के पिता ने मंत्री जी को ट्विटर सन्देश भेजा। लड़कियों को नासिक में बरामद कर पिता को सौंप दिया गया।
मेरठ के सरधना के छुर गाँव से 29 वर्ष पहले कामकाज की तलाश में जमील नाम का किशोर सन् 1987 में घर से भागकर मुम्बई चला गया था। तब से उसका अपने परिवार से नाता टूट गया था। जब वह घर से भागकर मुम्बई गया था तब उसकी उम्र 19 वर्ष थी। साल 2011 में जमील का विवाह तय हुआ तो उसने अपने विवाह का कार्ड फेसबुक पर अपलोड किया। जिसे उसके भतीजे शाहनवाज उर्फ शान पुत्र शकील और चचेरे भाई आसिफ ने देखा। किसी तरह फोन पर उन्होंने जमील से सम्पर्क किया। फेसबुक इस मिलन का साधन बन गया।
अभी हाल में ही जर्मनी के एक शरणार्थी शिविर में गुरप्रीत नाम की एक भारतीय महिला फस गयी थी। सोशल मीडिया के माध्यम से पता चलने पर भारतीय दूतावास ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के निर्देशन में उसे वहाँ से निकाल कर भारत पहुँचाया।
सभी जानते हैं कि नकली नोट के सौदागरों ने देश की अर्थव्यवस्था को कितना परेशान कर रखा है। आम व्यक्ति अथवा आम व्यापारी नकली और असली नोटों में विभेद नहीं कर पाता लिहाजा उनको नकली नोट आसानी से हस्तांतरित कर दिए जाते हैं परन्तु अब तकनीक का सफल प्रयोग कर ऐसी मशीन का ईजाद किया गया है जो नोटों की गिनती के साथ नकली नोटों की पहचान कर उन्हें अलग कर देती है ।
अब भ्रष्टाचार को रोकने हेतु धीरे-धीरे सब कुछ आॅनलाइन किया जा रहा है। आप अपने नाम नामांतरित भूमिखंड को घर बैठे देख सकते हैं। अफसर और विभागीय कर्मचारी प्रशासनिक आदेश, वेतन वृद्धि ही नहीं बजट आदि भी देख सकते हैं इस ट्रांसपेरेंसी से भ्रष्टाचार में निश्चित कमी आवेगी।
अभी हाल में जयपुर की एक डाॅक्टर ने जयपुर की एक कोर्ट में बैठ, वहाँ के सूचना संसाधनों का प्रयोग कर, कोर्ट के निर्देशानुसार अपनी गवाही दर्ज करा ५ दिन का कार्य न केवल २ घंटे में निपटा दिया वरन् सरकारी व्यय जो कि डाॅक्टर को टी.ए. आदि के रूप में सरकार को देना पड़ता उसे बचाया। इससे न्याय को भी त्वरित गति मिल सकेगी। हाल में हेडली ने विदेश से ही इसी माध्यम से अपने बयान दर्ज कराए हैं। आगे चलकर संभवतः इस प्रक्रिया को अधिक अपनाया जावे। डी.एन.ए. जाँच की बात करें तो क्रान्ति ही है कितने ही अपराधी इस तकनीक की सहायता से अंजाम तक पहुँचे हैं, स्थानाभाव के कारण उनका संक्षिप्त वर्णन भी नहीं किया जा सकता।
अपराध की रोकथाम तथा अपराध हो जाने के बाद अपराधी को पकड़ने में सी.सी.टी.वी. के महत्वपूर्ण योगदान को नहीं नकारा जा सकता। ब्रिटेन तथा अमेरिका में इस प्रकार का साॅफ्टवेयर बनाने की कोशिश की जा रही है जो अपराध घटित होने के पहले ही संभाव्य अपराध के बारे में सूचना दे दे। अगर ऐसा होता है तो दृश्य कुछ इस तरह होगा कि एक पुलिस अधिकारी अपनी स्क्रीन के सामने बैठा है। स्क्रीन पर शहर का नक्शा है अचानक उसपर एक स्थल पर लाल निशान आने लगता है जो इस बात का सूचक होगा कि वहाँ घंटे-दो घंटे बाद अपराध घटने वाला है। फिर क्या है वहाँ फोर्स भेज कर अपराध को रोकना भर ही तो है।कुल मिलाकर यह तय है कि तकनीक का दुरुपयोग न होकर सदुपयोग ही हो तो यह हमारी दृष्टि में वरदान ही है।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’। आज इण्टरनेट के प्रयोग पर आधारित तकनीकी साधन यथा सोशल मीडिया विशेषकर व्हाट्सएप तथा फेसबुक किसी नशे की तरह से आम आदमी की जिन्दगी में स्थान बनाते जा रहे हैं। सुबह उठते ही सबसे पहला कार्य मोबाइल देखने का हो गया है। यह जो स्थिति बनती जा रही है इसके परिणाम अत्यन्त भयावह हैं। इस बात को लेकर विश्व भर के समाजशास्त्री चिंतित हैं। अत्यधिक उपयोग ही सबसे बड़ा दुरुपयोग है। इस लत से नयी पीढ़ी को बचाने हेतु सर्व प्रयास किये जाने चाहिए।