सात समन्दर पार वैदिक धर्म प्रचार
शिकागो। उत्तरी अमरीका का एक शानदार शहर। कुदरत का अद्भुत चमत्कार। फ्रेश वाटर से लबालब मिशीगन लेक के कारण इण्डस्ट्रीज की भरमार, पर प्रदूषण नाम का नहीं। मकानों के चारों ओर सड़क के किनारे हरियाली ही हरियाली। परन्तु मच्छर, मक्खी देखने से भी नहीं मिलते। गायों के बड़े बड़े फार्म, कुत्ते आदि पालने का शौक, पर एक भी जानवर सड़क पर नहीं दिखाई देता। सफाई ऐसी कि जैसे रोज रात को सड़कें धोई जाती हों। 25 जुलाई को हम इस सुन्दर नगर में, प्रसिद्ध वैदिक विद्वान् डाॅ. सोमदेव शास्त्री, मुम्बई के साथ, सात समन्दर पार वैदिक धर्म ध्वजा को फहराने वाले, चर्च को खरीदकर आर्य समाज की स्थापना करने जैसे अद्भुत काम को अंजाम देने वाले, इस न्यास के संरक्षक, आर्य समाज शिकागोलैण्ड के संस्थापक प्रधान, सुप्रसिद्ध कैंसर विशेषज्ञ डाॅ. सुखदेव चन्द जी सोनी के 80वें जन्म दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित त्रिदिवसीय कार्यक्रम में सम्मिलित होने पहुँचे। न्यास के संरक्षक श्री बी. एल. अग्रवाल एवं उनके सुपुत्र डाॅ. राजेश पहले ही पहुँच चुके थे। यह हमारी दूसरी शिकागो यात्रा थी एवं डाॅ. सोमदेव जी की पहली। सब कुछ और भी खूबसूरत। आर्य समाज शिकागोलैण्ड नयनाभिराम है। ऊपर नीचे दो बड़े हाॅल हैं। ऊपरी हाॅल सत्संग सभा के रूप में काम आता है। मंच के ऊपर तीन सुसज्जित वेदियाँ हैं। डाॅ. सोनी जी ने मुझे कार्यक्रम का एम.सी. अर्थात् डंेजमत व िबमतमउवदल बना दिया। यह मेरे लिए बिल्कुल नया शब्द था। पर कार्य वैसा ही था जैसा हमारे यहाँ संयोजक/संचालक का होता है।
दिनांक 25 को डाॅ. सोनी परिवार की ओर से लगभग 300 लोगों का डिनर आयोजित किया गया था। मेन्यू, गुणवत्ता तथा विविधता लाजवाब। पर मेरे निकट हैरानी की बात ये थी कि इतने सारे मेहमानों के होने पर भी ‘बुके’ 2-4 ही आए थे। पता चला कि डाॅ. सोनी जी ने सभी मेहमानों को निवेदन किया था कि वे कुछ भी उपहार लेकर न आएँ। जो भी चाहें स्वश्रद्धानुसार आर्य समाज को दान दें। हमारे यहाँ तो ऐसे निवेदन के बावजूद भी गुलदस्तों के ढेर इकट्ठे हो जाते हैं। और सहस्रों पुष्प बरबाद होते हैं।
आर्य समाज शिकागो में 26 व 27 को दो दिवसीय यज्ञ के ब्रह्मा गुरुकुल गौतमनगर, दिल्ली के अधिष्ठाता पूज्य स्वामी प्रणवानन्द जी थे। इसके अतिरिक्त डाॅ. सोमदेव शास्त्री, श्री आशीष दर्शनाचार्य जी, लखनऊ से पधारे पंडित रामकिशन जी, आचार्य धनफ्जय जी, श्री धर्मपाल जी शास्त्री के सारगर्भित प्रवचनों को श्रोताओं से खचाखच भरे सभागार ने करतल ध्वनि से सराहा। हमारे निकट, विख्यात् भारतीय गायिका मीनू पुरुषोत्तम जी द्वारा की गई भजन-रस-वर्षा में स्नान करना, अविस्मरणीय रहेगा। मीनू जी नियमित रूप से आर्य समाज शिकागो के साप्ताहिक सत्संग में भाग लेती रहती हैं।
यहाँ हम हमारे मेजबान शाह परिवार का व श्री हरि दुग्गल का उल्लेख न करें तो कृतघ्नता होगी। प्रायः हम भारतीय यह समझ लेते हैं कि अतिथि सेवा केवल हमें आती है। परन्तु डाॅ. हँसमुख शाह तथा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती ज्योत्सना जी ने जिस प्रकार हमें हाथोंहाथ रखा वह वर्णनातीत है। विदेश में बसे भारतीय परिवारों की पारिवारिक तथा सामाजिक संरचना पर डाॅ.शाह दम्पती से काफी बातें हुईं। डाॅ. शाह रिटायर होकर अपना सारा समय एकल विद्यालय परियोजना के माध्यम से समर्पित कर माँ भारती की सेवा में संलग्न हैं। श्री हरि दुग्गल, उनके सुपुत्र व बेटी ज्योति ने हमें शिकागो-दर्शन कराया। एक अन्तिम बात और, यहाँ हमें ज्ञात हुआ कि डाॅ. सुखदेव चन्द जी सोनी तथा सरोज जी शिकागो के भारतीय परिवारों में अतीव प्रशंसा की दृष्टि से देखे जाते हैं। वे उनकी उदार प्रवृत्ति की चर्चा करते थकते नहीं। अस्तु।
दिनांक 31 जुलाई 2014 से 3 अगस्त 2014 में आर्य प्रतिनिधि सभा ;ज्तपेजंजमद्ध अमेरिका द्वारा आयोज्य 24वाँ आर्य महासम्मेलन ‘न्यूजर्सी’ में होना था। हम और डाॅ. सोमदेव जी इसमें भाग लेने दिनांक 29 जुलाई को ही पहुँच गए। यहाँ श्री अरुण हाण्डा जी व उनकी बहिन ने भावभीना आतिथ्य प्रदान किया। अरुण जी ने स्वयं 4 घंटे ड्राइव कर हमें न्यूयार्क-दर्शन कराया। उनका आभार। समारोह के केन्द्र बिन्दु सभा के प्रधान डाॅ. रमेश गुप्ता थे। इनके नेतृत्व में, श्री ‘विश्रुत’ (महामंत्री सभा) के संयोजन में समारोह अतीव सफल रहा। 200 से अधिक प्रतिनिधि थे। भारत से भी विद्वद्गण उपस्थित थे। अतीव व्यवस्थित कार्यक्रम में समय की कठोरता से अनुपालना अनुकरणीय थी। विशेष बात यह थी कि चाय/नाश्ता/ लंच/डिनर हेतु 5-6 बार श्रोतागण बाहर जाते थे। पर तुरन्त ही कार्यक्रम में वापस आ जाते थे। यह एक ऐसी बात थी जो भारतवर्ष के सात समन्दर पार वैदिक धर्म प्रचारकार्यक्रमोें में मुझे कम ही देखने को मिली।
समारोह के पूर्व सभा प्रधान डाॅ. रमेश गुप्ता जो कि एक सफल ळंेजतवमदजतवसवहपेज हैं, ने 30.7.14 की सायं को अपने घर यज्ञादि का कार्यक्रम रखा। आज आर्य समाज में युवा पीढ़ी नहीं आ रही इस प्रश्न से चिन्तित और इसका समाधान खोज रहे आर्य नेताओं के समक्ष उपस्थित इस यक्ष प्रश्न का, मेरे विचार में डाॅ. रमेश गुप्ता के परिवार में समाधान दिखा। वैदिक विचारों से परिवार के सदस्यों को सप्रयास सम्पृक्त करना ही इसका समाधान है। डाॅ. रमेश जी की धर्मपत्नी अमिता जी, पुत्र पुनीत, पुत्रियाँ प्रिया तथा अनुपमा वैदिक-संस्कृति-रस में आकण्ठ पगे दिखे। घर में नयनाभिराम वेद मंदिर, विशाल वैदिक पुस्तकालय, ध्यानकक्ष आदि की उपस्थिति इंगित कर रही थी कि डाॅ. रमेश जी ने परिवार में वैदिक विचारधारा को प्रवहमान रखने हेतु प्रयास किया है। यही कारण है कि अनेक विद्वानों की उपस्थिति में पुत्री अनु ने यज्ञ का सम्पादन निःसंकोच कराया। पूरे सम्मेलन मंे सभी बच्चे तत्परता से व्यवस्थाओं में जुटे रहे। अटलाण्टा से पधारे पं. गिरि जी का परिवार भी इसी श्रेणी में आता है। ऐसे ही प्रयास हम लोगों को करने होंगे। श्री गिरीश जी खोसला जी के पुत्र भुवनेश खोसला व विश्रुत जी का परिवार भी इसी दिशा में प्रत्यक्ष उदाहरण है। समारोह में सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा की ओर से इसके उपप्रधान माननीय सुरेश चन्द्र अग्रवाल उपस्थित थे। उन्होंने सभा द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों की विस्तृत सूचना दी। डाॅ. रमेश गुप्ता, डाॅ. सूर्या नन्दा, डाॅ. चन्दोरा, श्री अमर ऐरी आदि के शोधपत्रों तथा डाॅ. सोमदेव शास्त्री, श्री चन्द्रशेखर शास्त्री, स्वामी प्रणवानन्द जी, श्री अजय शास्त्री, योगाचार्य आदि विद्वानों के प्रवचनों ने समारोह को ऊँचाइयाँ प्रदान कीं।
एक बात और सारे कार्यक्रम में लगभग 50-60 युवाओं ने भाग लिया, सुन्दर प्रस्तुतियाँ दीं। श्रीमती देवी जी निर्देशन में ।तलं ेचतपजनंस बमदजतम न्यूयार्क में अनेक युवा तैयार हो रहे हैं। डाॅ. सतीश जी के नेतृत्व में अनेक युवा तैयार हो रहे हैं। यह सब अतीव प्रेरणादायी है।
प्रभु कृपा करे वैदिक धर्म पारिवारिक धर्म बने इस तरफ हम सब प्रयत्नशील हों।