आधा अधूरा प्रयास
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हमने लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की है। वैसे भी भारतीय मनीषा ने लोक कल्याण को सदैव शासन का प्रथम कर्त्तव्य माना है। शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन आदि क्षेत्रों में शासन ने अपने उत्तरदायित्व को समझने का प्रयास किया है। नवजागरण के पुरोधा महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है-
‘जो राजा राज्यपालन में सब प्रकार तत्पर रहता है, उसको सदा सुख बढ़ता है। (सत्यार्थ प्रकाश पृ.155)
आगे लिखा है- ‘राजाओं का प्रजा पालन करना ही परमधर्म है’। (सत्यार्थ प्रकाश पृ.157)
ऋषि राजा और प्रजा के संबधो को बड़ी सुंदरता के साथ निरूपित करते हैं- ‘राजा, प्रजा को अपने संतान के सदृश सुख देवे और प्रजा अपने पिता सदृश राजा और राज-पुरुषों को जाने’। (सत्यार्थ प्रकाश पृ.166)
प््रााचीन भारतीय मनीषा द्वारा स्थापित मानदंड अगर राजा-प्रजा के मध्य स्थापित हो जाय तो नतो भ्रष्टाचार हो और न कोई भ्रष्ट हो। दुर्भाग्य से आज इसके ठीक विपरीत वातावरण है। राज्य मनुष्य को पतन के गर्त में धकेलने वाले साधनों का समूल नष्ट करने के बजाय उनसे राजस्व के जुगाड में लगा रहता है। लोक स्वास्थ्य की चिंता करने वाली सरकार शराब, धूम्रपान, तम्बाकू, अफीम विक्रय को छूट देकर, जनता के स्वास्थ्य के साथ ख्लिवाड कर रही है।विचार यह करना है कि उक्त छूट जिससे न केवल जनता के स्वास्थ्य पर गंभीर विपरीत प्रभाव पडता है वरन नाना प्रकार की सामाजिक बुराइयां व अपराध पनपते हैं लाखों घर जिसके कारण बर्बाद हो गए ऐसे उत्पादों को क्या केवल इस कारण पूर्ण-रूपेण प्रतिबंधित नहीं किया जावे कि उससे राजस्व की प्राप्ति होती है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि गलत साधनों से होने वाली आय विनाश की कारक होती है, यह भी कि ऐसे शासन को कभी भी लोक कल्याणकारी शासन नहीं कहा जा सकता।
कुछ विशिष्ट अवसरों को ‘ड्राई डे’ घोषित कर, धूम्रपान को सार्वजनिक स्थल पर प्रतिबंधित कर, तम्बाकू तथा सुपारी पर वैधानिक चेतावनी लिखकर न तो इनका सेवन रुक सकता है, न रुका है। जनता को शिक्षित करने के साथ-साथ इन मादक, स्वास्थ्य विनाशक पदार्थों पर पूर्ण प्रतिबन्ध आवश्यक है। इसके लिए आधे अधूरे प्रयास नहीं पूर्ण इच्छा शक्ति के साथ कठोर कदम उठाने आवश्यक हैं।
ऐसा ही आधा-अधूरा कदम गुटखा पर रोक लगाना है। वस्तुतः खाद्य सुरक्षा एवं अधिनियम में ऐसे सभी खाद्य पदार्थों के विक्रय पर प्रतिबन्ध लगाया है जिनमे तम्बाकू हो। परन्तु मजे कि बात यह है कि तम्बाकू के विक्रय पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है। यह ठीक वैसा ही है जैसे जहर मिले खाद्य पदार्थ का बेचना तो प्रतिबंधित कर दिया जाय परन्तु जहर खुले आम बेचने दिया जाय।
यहाँ अति संक्षेप में तम्बाकू तथा इससे स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभावों को भी जान लें-
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिर्पोट के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 18 लाख लोगों की मृत्यूु तम्बाकू और सिगरेट के सेवन करने से होती है। एक अनुमान के अनुसार धूम्रपान के कारण होने वाले कैंसर से कुल 5.35 लाख लोगों की मौतें प्रतिवर्ष हो रही है,
एक अन्य अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक भारत में तम्बाकू से होने वाले कैंसर के कारण मरने वालों की संख्या एक करोड़ 15 लाख को पार कर जाएगी।
ये घातक स्थिति तम्बाकू में मौजूद अत्यन्त हानि कारक तत्व निकोटिन की वजह से है। निकोटिन से कैंसर व उच्च रक्तचाप जैसे गंभीर रोग पैदा होते हैं। एक पौण्ड तम्बाकू में निकोटिन नामक जहर की मात्रा लगभग 22.8 ग्राम होती है। इसकी 1/3800 मात्रा (6 मिलीग्राम) एक कुत्ते को तीन मिनट में मार देती है। तम्बाकू की लत इसी निकोटिन के कारण पडती है। निकोटिन 5 सेकंड में दिमाग पर असर करता है और सेवन करने वाले को इस जहर की लत लगा देता है। तम्बाकू में विद्यमान कार्सिनोजैनिक एक दर्जन से भी अधिक हाइड्रोकार्बन्स जीवकोशों की सामान्य क्षमता को नष्ट कर उन्हें गलत दिशा में बढ़ने के लिए विवश कर देते हैं, जिसकी परिणति कैंसर की गाँठ के रूप में होती है। भारत में किए गए अनुसंधानों से पता चला है कि गालों में होने वाले कैंसर का मुख्य कारण खैनी अथवा जीभ के नीचे रखी जाने वाली, चबाने वाली तम्बाकू है। तम्बाकू में निकोटिन के अलावा कार्बन मोनोक्साइड, मार्श गैस, अमोनिया, कोलोडीन, पापरीडिन, कार्बोलिक ऐसिड, परफैरोल, ऐजालिन सायनोजोन, फास्फोरल प्रोटिक एसिड आदि कई घातक विषैले व हानिकारक तत्व पाए जाते हैं। कार्बन मोनोक्साइड से दिल की बीमारी, दमा व अंधापन की समस्या पैदा होती है। मार्श गैस से शक्तिहीनता और नपुंसकता आती है। अमोनिया से पाचन शक्ति मन्द व पित्ताशय विकृत हो जाता है। कोलोडीन स्नायु दुर्बलता व सिरदर्द पैदा करता है। पापरीडिन से आँखों में खुश्की व अजीर्ण की समस्या पैदा होती है। कार्बोलिक ऐसिड अनिद्रा, चिड़चिड़ापन व भूलने की समस्या को जन्म देता है। परफैरोल से दाँत पीले,मैले और कमजोर हो जाते हैं। ऐजालिन सायनोजोन कई तरह के रक्त विकार पैदा करता है। फास्टोरल प्रोटिक ऐसिट से उदासी, टी.बी.,खाँसी व थकान जैसी समस्याओं का जन्म होता है।
कई विशेषज्ञों ने शोध के बाद दावा किया है कि तम्बाकू के कारण करीब 40 प्रकार के कैंसर होने का खतरा बना रहता है।
यदि आँकड़ो पर नजर डालें तो पता चलता है कि विश्व में हर 8 सेकिण्ड में धूम्रपान की वजह से एक व्यक्ति की मौत हो रही है। शायद कम लोगों को पता होगा कि एक सिगरेट पीने से व्यक्ति की 5 मिनट आयु कम हो जाती है। 20 सिगरेट अथवा 15 बीड़ी पीने वाला एवं करीब 5 ग्राम सुरती, खैनी आदि के रूप में तम्बाकू प्रयोग करने वाला व्यक्ति अपनी आयु को 10 वर्ष कम कर लेता है।
प्राचीन समय में भी अनेक देशों में तम्बाकू और इसके उत्पादों का सेवन करने वालों को कड़ी सजा का प्रावधान था। भारत में जहाँगीर बादशाह ने तम्बाकू का प्रयोग करने वालों की यह सजा तय कर रखी थी कि उस आदमी का काला मुँह करके और गधे पर बैठाकर पूरे नगर में घुमाया जाए।
तुर्की में जो लोग धूम्रपान करते थे, उनके होंठ काट दिए जाते थे। जो तम्बाकू सूँघते थे, उनकी नाक काट दी जाती थी। ईरान में भी तम्बाकू का प्रयोग करने वालों के लिए कडे़ शारीरिक दण्ड की व्यवस्था थी।
गुटखा प्रतिबंधित होने पर इसके व्यसनियों ने नया रास्ता निकाल लिया। पान मसाला नाम से उपलब्ध उत्पाद प्रतिबंधित नहीं है न ही अकेले तम्बाकू का विक्रय प्रतिबंधित है। अतः वे दोनों को पृथक-पृथक क्रय कर मिलाकर उपभोग में ला रहे हैं। इसे कहते हैं कानून को ठेंगा दिखाना।
यहाँ यह भी विचारणीय है कि तम्बाकू सेवन का एक बड़ा माध्यम धूम्रपान है। तम्बाकू चबाने वाला तो स्वयं को ही नुकसान पहुँचाता है परन्तु धूम्रपान करने वाला {Active smoker} स्वयं के अतिरिक्त पास खड़े इंसान {passive smoker} को भी नुकसान पहुँचाता है अतः आवश्यकता इस बात की है कि कडे़ निर्णय सरकार द्वारा लिए जायँ। जहाँ तक राजस्व का प्रश्न है लोक-स्वास्थ्य की कीमत पर कोई भी अर्जन अनैतिक है फिर तम्बाकू-जनित बीमारियों पर होने वाला व्यय भी तो बचेगा, इस बात को नहीं भूलना चाहिए।
समाज व राष्ट्र के प्रत्येक घटक की शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति के लिए तम्बाकू और इसके प्रत्येक उत्पाद के विक्रय पर ही नहीं उत्पादन तथा सेवन पर रोक लगा देनी चाहिए। ऐसा जितना शीघ्र हो जाय अच्छा है।