बहुत कठिन है डगर कर्तव्यनिष्ठा की
सत्यार्थ प्रकाश के छठे समुल्लास में महर्षि दयानन्द ने आदर्श राष्ट्र का स्वरूप प्रस्तुत किया है जो लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर
आधारित है परन्तु यह लोकतन्त्र योग्यता व उच्चतम नैतिक मूल्यों आधारित है। राजा (शासक), राजपुरुष, मन्त्रिमण्डल के
सदस्य, सेनापति, न्यायाधीश सभी न केवल अपने-अपने कार्य में दक्ष हों वरन् उच्चतम मानवीय मूल्य भी उनमें कूट-कूट कर
भरे हां। यहाँ तक कि न्यायालय में गवाही देने वाले भी आप्त हों,यहाँ तक ऋषि की सोच थी। इसके संदर्भ में जब आज अपने
परिवेश को देखते हैं तो सर्वथा विपरीत वातावरण दिखायी देता है। कार्यक्षेत्र में दक्षता तो फिर भी दृष्टिगोचर होती है पर
नैतिकता की कसौटी पर आज के शासक, राजपुरुष (अफसर व कर्मचारी वर्ग), न्यायाधीश, संक्षेप में कहें तो विधायिका,
कार्यकारी तथा न्यायिक सभी क्षेत्रों में पतन की पराकाष्ठा दिखायी देती है। और तो और भ्रष्टाचार का यह विषधर सेना को भी
डस चुका है। राष्ट्र की सुरक्षा ही दॉव पर लग गयी है। अभी इटली निर्मित अगस्ता वैस्टलैण्ड हैलीकाप्टर की खरीद में 3600
करोड़ रुपये का भ्रष्टाचार संसद के पटल पर है। कोलगेट, 2 जी, कामनवैल्थ खेल, रेल मंत्रालय के महत्वपूर्ण पदों पर
नियुक्ति में हुये बड़े-बड़े भ्रष्टकाण्ड चर्चा में हैं।
ठीक ही कहा गया है ‘यथा राजा तथा प्रजा’। आज भ्रष्टाचार सर्वोच्च स्तर पर व्याप्त है। इसमें दल विशेष की बात नहीं है
कोई पीछे दिखायी नही देता। जब बात शीर्ष स्तर के नेताओं को बचाने की आती है तो पूरा तंत्र बचाव में खड़ा हो जाता है।
अभी हाल में एक बिल पास करने की तैयारी की जा रही है, जिसमें ‘सूचना का अधिकार अधिनियम’ से राजनीतिक दलों को
मुक्त रखा जाय, यह प्रबन्ध किया जा रहा है। क्यों?ताकि यह पता न चले कि राजनीतिक दलों को चन्दा किस-किस से मिल
रहा है। यह सब घोटाला बन्द कमरे में रहे इसलिये उपरोक्त व्यवस्था की जा रही है। भ्रष्टाचार की नदी के उद्गम स्थल को
गुप्त रखने में सब सहमत प्रतीत होते हैं।
आज का चुनावी समर धनबल, बाहुबल व जातिबल पर आधारित है, सभी जानते हैं। आधे से अधिक नेताओं, यहाँ तक कि
मंत्रिमण्डल के सदस्यों पर भी आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं फिर भी वे पदासीन हैं।
ऐसे वातावरण में माननीय उच्चतम न्यायालय के दो निर्णयों ने राजनेताओं की साँसे अव्यवस्थित कर दी हैं। पहला जिन
व्यक्तियों को निचली अदालत ने अपराधी मान सजा दे दी है अथवा जो न्यायिक हिरासत/जेल में बन्द हैं वे चुनाव नहीं लड़
सकते और अगर वे पहले से ही सांसद/विधायक हैं तो रह नहीं सकते। दूसरे राजनीतिक दल जाति पर आधारित रैलियाँ नहीं
कर सकते। न्यायालय की चोट मर्मान्तक है। राजनेता छटपटा रहे हैं। अब इस फैसले को निरस्त करने हेतु संविधान संशोधन
लाया जा रहा है।
गरज यह कि राजनेताओं के शुद्धिकरण हेतु जो भी व्यवस्था निर्मित की जावेगी उसे येनकेन प्रकारेण निरस्त कर दिया जावेगा।
यह स्थिति तो तब है जब न्यायालय तक मामला पहुँचेगा। उससे पूर्व तो किसी न किसी जाँच एजेन्सी को मुकदमा बनाना
पड़ेगा। आरोप सिद्ध होने लायक सबूत जुटाने होंगे। निष्पक्ष, स्वतंत्र, निर्भीक जाँच एजेन्सी ही ऐसा कर सकती है। पहले ही
जो देश की उच्चतम जाँच इकाई है उसकी स्वायत्तता की कलई खुल चुकी है। उच्चतम न्यायालय उसे ‘तोता’ की संज्ञा दे चुका
है।
इस सबको देख घोर निराशा होती है। राजनेताओं से नीचे उतर ब्यूरोक्रेसी तथा पुलिस फोर्स की बात करते हैं तो सर्वत्र
असंवेदनशीलता तथा भ्रष्टाचार का साम्राज्य दिखाई देता है। पर इस सब के बीच में ऐसे दृढ़प्रतिज्ञ, कर्त्तव्यनिष्ठ अधिकारी
दिखाई दे जाते हैं जो किसी भी कीमत पर अपने कर्तव्य से च्युत् नही होते। मैं इन्ही को रेयरेस्ट ब्रीड कहता हूँ। यही राष्ट्र की
आशा हैं।
आज स्थिति यह है कि स्थानीय पुलिस ऑफिसर स्थानीय टटपूँजिए नेताओं के समक्ष ही हाथ बाँधे खड़े रहते हैं। ऐसे में
‘दामाद जी’ को आरोपित करने हेतु तो गज भर का कलेजा चाहिए था, जो आई.ए.एस. अधिकारी अशोक खेमका में है।
सीनियर आई.ए.एस. आफिसर अशोक खेमका ने जिस समय सोनिया गांधी के दामाद वाड्रा की लैण्ड डील अस्वीकृत की थी
वे इसका परिणाम भली भॉति जानते थे। परन्तु बीस साल के कार्यकाल में 44 से ज्यादा स्थानान्तरण भुगत चुके खेमका ने
बहुत कठिन है डगर
कर्त्तव्यनिश्ठा की
इसकी परवाह नहीं की। नतीजा एक और स्थानान्तरण। परन्तु समस्त जाँच के उपरान्त खेमका का स्पष्ट कथन है कि यह
कोई व्यापार या डील नहीं यह सिर्फ और सिर्फ दलाली है।
अभी सबसे ताजातरीन उदाहरण उत्तर प्रदेश के जिला गौतमबुद्ध नगर में कार्यरत् एस.डी.एम दुर्गाशक्ति नागपाल का है।
यथानाम तथा गुण के अनुसार दुर्गा ने खनन माफिया पर नकेल कस दी। अतः एक मामले में उन्हें फँसाया गया। कहा गया कि
नोएडा के कदालपुर गाँव में एक बन रही मस्जिद की दीवार ढहाने पर दुर्गा ने अपने कर्त्तव्य की अनदेखी की। उ.प्र. सरकार
ने दुर्गा को निलम्बित कर दिया। इस मामले में सोनिया गाँधी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। पर समुदाय विशेष के वोटों के
लालच में उ.प्र. सरकार ने इस मामले में कड़ा रुख अख्त्यार कर लिया है। यहाँ तक भी कह दिया गया है कि भले ही केन्द्र
सरकार सारे आई.ए.एस. अफसरों को वापस बुला ले राज्य सरकार उसके अफसरों से काम चला लेगी। यहाँ एक आश्चर्य
यह भी है कि वक्फ बोर्ड दुर्गा को क्लीनचिट दे चुका है फिर भी उ.प्र. सरकार अड़ी हुयी है। यह भी ध्यातव्य है कि मस्जिद
अगर बनायी भी जा रही थी तो भी माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार ऐसे निर्माणों के प्रतिबंधित होने से एस.डी.
एम.न्यायालय के आदेश की अनुपालना कर रही थीं। परन्तु बात यह नहीं है। कुछ ही दिनों में दुर्गा ने शक्तिस्वरूपा बन
‘खनन माफिया’ पर काल के समान जो वज्राघात किया था यह उसका राज्य की ओर से इनाम है। राज्य के एक मन्त्री द्वारा
यह दावा करने से कि ‘इस एस.डी. एम. को 41 मिनट में हटवा दिया’, आशंका की पुष्टि होती है। क्या ऐसे राष्ट्र में मूल्यों
की रक्षा होगी?
दुर्गा शक्ति की गलती यह थी कि नोएडा के खनन माफिया के विरुद्ध सख्त कदम उठाते हुए फरवरी से जुलाई के मध्य 66
एफ.आई.आर. दर्ज करायीं, 104 लोगों को गिरफ्तार किया और अवैध खनन में लगे 81 वाहनों जब्त किया। गत छः माह में
उन्हें अनेक धमकियाँ भी मिलीं।
अभी राजस्थान में एक आई.पी.एस. आफीसर पंकज चौधरी ने एक विधायक के पिता गाजी फकीर की संदिग्ध गतिविधियों के
चलते उसकी हिस्ट्रीशीट दोबारा खोल दी तो उसका स्थानान्तरण कर दिया गया।
इस प्रकार हम देखते है कि मुट्ठीभर ही सही कर्त्तव्यनिष्ठ अधिकारी अपना कार्य करना चाहते हैं पर राजनेता उन्हें ऐसा नहीं
करने देना चाहते। पर रास्ता इन्हीं कर्मयोद्धाओं के बीच में से निकलेगा, नरेन्द्र कुमार, प्ण्च्ण्ैण्(मुरेना), जियाउल हक
प्ण्च्ण्ैण्(प्रतापगढ़), कान्स्टेबल महावीर सिंह (फरीदाबाद), ए.एस.आई. धर्मपाल (हरयाणा), पोलोज थामस (राष्ट्रीय
राजमार्ग अधिकरण), यशवन्त सोनवाने (ए.डी.एम. मनमाड), मंजुनाथ शंभुघम (लखीमपुर), सत्येन्द्र दुबे (परियोजना
निदेशक, राष्ट्रीय राजमार्ग अधिकरण,गया) की शहादत कर्त्तव्य निष्ठों के लिए आदर्श प्रेरणा का स्रोत्र रहेगी। के.जी. अल्फास
(दिल्ली), ए.एस. सरमा (आन्ध्र), अरुण भाटिया (महाराष्ट्र), उमाशंकर (तमिलनाडु), पूनम मलकण्डिया (आ.प्र.), जी.आर.
खेरनार, (महा.), मनोज नाथ (बिहार) आज भी उदाहरण प्रस्तुत करते हैं कि यद्यपि कर्त्तव्यनिष्ठा आज के भारत में सुविधा
तथा पुरस्कार नहीं दुविधा तथा संकट लेकर आती हैं पर फिर भी कर्त्तव्यच्युत् होने से बचा जा सकता है।
महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने 67 वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर अपने उद्बोधन में भ्रष्टाचार का बोलबाला
स्वीकार किया है पर इस भ्रष्टाचार को समूल नष्ट तभी किया जा सकता है जब राज्य अधिकारियों को ईमानदारी से कार्य
करने की सजा मिलने की प्रथा को कुचल दिया जाय। क्या कारण है कि आम चुनावों से पूर्व थोक के भाव अधिकारियों के
स्थानान्तरण होते हैं? क्या राजनेताओं के हाथ से स्थानान्तरण का अधिकार वापस लिया जावेगा? ईमानदारों की उपेक्षा तथा
चाटुकारों को सम्मानित करने की प्रथा बन्द होगी?
ऋषि दयानन्द ने ठीक लिखा है- ‘सब राज और प्रजापुरुषों के सब दोष और गुण गुप्तरीति से जाना करे जिनका अपराध हो,
उनको दण्ड और जिनका गुण हो, उनकी प्रतिष्ठा सदा किया करे।’ निराशा की स्थिति में हताश होने की आवश्यकता नहीं है।
समय बहता झरना है। सदैव एकसा नहीं रहता। इतिहास की उलट पुलट गवाह है। अतः भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण की
आवश्यकता है। एक बात और हम दूसरे से ईमानदारी की अपेक्षा करें और स्वयं भ्रष्टाचार की गंगा में गोते लगाते रहें, यह
नहीं चल सकता। हम जैसा परिवेश चाहते हैं तदनुकूल स्वयं भी अपने को ढालें।
अन्तिम बात। लोकतन्त्र में चुनाव का समय सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। यही बदलाव का निर्णायक अवसर है। आगे एक वर्ष
में चुनावों का दौर हमारे समक्ष होगा। भ्रष्ट और दागी प्रत्याशियों को पूर्णतः नकारें, श्रेष्ठों को मत अवश्य दें। मतदान न करने
को पाप समान समझें। धनबल, जातिबल, बाहुबल को अतीत का अंग बना दें। अपना मत गोपनीय है, डर किस बात का है?
जिन्होंने स्वयं को साबित किया है, जो ईमानदार, राष्ट्रभक्त हैं उन्हें शासन सौंपने की तैयारी करें। सपनों का भारत निर्मित तो
होना ही है क्या पता उसके प्रारम्भ का यही समय हो!