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Satyarth Prakash Nyas / सम्पादकीय  / आतंक के नए मसीहा

आतंक के नए मसीहा

26 जून 2015। उत्तरी अफ्रीका के समुद्र तटीय इलाके में अवस्थित ट्यूनीशिया का सोजी शहर। छुट्टियों के दिन सैलानियों की भीड़। एक होटल के प्राईवेट बीच पर आनंद लेते सैलानी। अचानक एक नवयुवक अवतरित होता है और हाथ में पकड़ी क्लाश्निकोव से अंधाधुंध गोलीबारी कर 38 लोगों की हत्या कर देता है। हाहाकार मच जाता है। पलक झपकते बीच खाली हो जाता है। सुरक्षा कर्मियों द्वारा की गयी जबाबी कार्यवाही में वह युवक मारा जाता है, परन्तु एक प्रश्न सबके समक्ष छोड़ जाता है कि वह कौन था और उसका उद्देश्य क्या था? बच गए लोगों में से कुछ ने बताया कि गोलीबारी शुरू करने से पहले उन्होंने उस युवक को देखा था। उनका कहना था कि वह अनेक लोगों से घुल मिलकर बात कर रहा था, हँस रहा था, मजाक कर रहा था। उसके हाव भाव तथा वर्ताब से ऐसा कतई नहीं लग रहा था कि वह ऐसा जघन्य काण्ड करने जा रहा है। जाँच एजेंसियों का कहना है कि वह जब लोगों से घुल मिल रहा था तो अपने टारगेट तलाश कर रहा था। उसके शिकार में सर्वाधिक ब्रिटिश तथा फ्रेंच नागरिक थे। शूटर का नाम सैफिदीन रेजगी था वह एक छात्र था तथा उसे जानने वाले यह सोच भी नही सकते थे कि वह कभी भी ऐसा जघन्य कृत्य कर सकता है। यह युवक किस आतंकवादी संगठन से जुड़ा था? जी हाँ, यही है आतंक का नया चेहरा। आतंक के नए मसीहा का दुनिया को पैगाम। यह है इस्लामिक स्टेट आॅफ सीरिया एंड ईराक अर्थात् आई.एस.आई. एस।
पिछले कई दशकों में विश्व आतंक के अनेक दंश झेल चुका है फिर भी इस पर नियंत्रण प्राप्त करने की दिशा में किंचित भी सफलता मिली हो ऐसा लगता नहीं। वस्तुतः हर कार्य का कारण होता है जब तक कारण का नाश नहीं होगा तब तक कार्य अर्थात् आतंक का अस्तित्व रहेगा। जिन लोगों को किसी व्यक्ति या समुदाय के अत्याचार का शिकार होना पड़ा उनके द्वारा की गयी विद्रोहस्वरूप कार्यवाही तो समझ में आ भी सकती है यद्यपि वह भी समर्थनीय नहीं है, परन्तु ऐसी कार्यवाही जिसमें जिस किसी भी निर्दोष को मार दिया जाय और इससे भी आगे ऐसे इलाकों में कार्यवाही की जाय जिससे अधिकाधिक लोग हताहत हों इसके पीछे क्या विचारधारा कार्य कर रही है इसका विश्लेषण आवश्यक है। ईश्वर के अस्तित्व, व्यक्ति के चारों ओर स्थापित मान्यताएँ चाहे वह व्यक्ति के स्वयं के आचरण से सम्बंधित हों, उपासना पद्धति से सम्बन्धित हांे या सामजिक जीवन से, इनमंे विभिन्नताएँ मिलती ही हैं। हर व्यक्ति अपनी तथा अपने समुदाय की सोच को ही सही मानता है और चाहता है कि उसकी जैसी सोच रखने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जाय। मानव के मनोविज्ञान को देखें तो यहाँ तक कुछ अजीब नहीं है। आध्यात्मिक, दार्शनिक, सामाजिक, आदि दृष्टि से एक जैसी सोच वालों को हम मजहब का नाम अगर मोटे तौर पर दे दें तो निष्कर्ष निकलता है कि हर मजहब अपनी वृद्धि चाहता है। परन्तु उसका मार्ग क्या हो यही बात मुख्य है। अगर हम भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो विचारों में भिन्नता रखने वाले समुदायों की यहाँ कमी नहीं रही है, उनमंे द्वेष भी रहा है, वाणी तथा लेखनी से विष वमन भी हुआ है इससे इनकार नहीं किया जा सकता, परन्तु अपवादों को छोड़कर बलात् अपने दर्शन को मनवाने की प्रथा यहाँ नहीं रही। विचार विनिमय जिसे शास्त्रार्थ भी कहा जाता है भारत भूमि पर प्रिय उपाय रहा है और यही मनुष्य जीवन की शोभा है। तलवार तथा ताकत के बल पर मजहब प्रसारण की परम्पराएँ सहस्राब्दियों पूर्व भारतेतर विश्व में रही हैं। ईसाइयों के क्रूसेड तथा इस्लाम के जिहाद इसके उदाहरण रहे हैं।
भारत विभाजन के बाद भारत भूमि पर हुए अधिकांश आतंकवादी आक्रमण पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित रहे जो मजहब प्रसार की अपेक्षा द्वेष तथा राजनीति से प्रेरित रहे हैं। हाँ, आतंकियों को तैयार करने में उन्हें कट्टर बनाने तथा यह विश्वास दिलाने में कि वे अल्लाह का कार्य कर रहे हैं मजहबी मानसिकता का खुल कर प्रयोग किया गया।
यह भी सत्य है कि विश्व भर में बढ़ते जा रहे आतंकी हमलों में धीरे-धीरे मजहबी मानसिकता बढ़ती जा रही है क्योंकि उन्माद की हद को स्पर्श करने वाले आतंकियों को तैयार करने में यही कारगर सिद्ध हो रहा है।
यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि ओसामा बिन लादेन का अपना कोई साम्राज्य नहीं था, वह दूसरे देशों की भूमि से ही अपने आतंक का व्यापार करता रहा। इस मामले में आई.एस.आई.एस. अब तक के सभी आतंकी संगठनों से बिलकुल अलग है इसलिए अधिक इस्लामी है, अधिक व्यापक है और अधिक खतरनाक है।
स्वयं आई.एस.आई.एस. के कर्ता-धर्ताओं का विश्वास है कि अन्य सभी आतंकी संगठन इस्लामी नहीं हैं। शुद्ध इस्लाम को आतंक के नए मसीहाउनकी नजर में कोई प्रवर्तित नहीं कर रहा, न मुस्लिम कहे जाने वाले राष्ट्र भी शुद्ध इस्लामी हैं अतः इस दायित्व का निर्वहन वे कर रहे हैं अतः उनका दायित्व व कार्यपद्धति पूर्ण शुद्ध इस्लामिक है। इस विचारधारा का वे अनेक माध्यमों से खुल कर प्रचार कर रहे हैं। उनके रिक्रूटिंग एजेंट्स अनेक जगह कार्य कर रहे हैं, आप पर उनकी बातों का कोई प्रभाव न भी पड़े पर जानकार बता रहे हैं कि दुनिया भर से आई.एस.आई.एस. में भरती होने सैंकड़ों लोग सीरिया पहुँच रहे हैं यही बात सर्वाधिक चिन्ताजनक है।
आई.एस.आई.एस. इस्लामिक स्टेट में खिलाफत की स्थापना करना अत्यावश्यक मानता है उसके लिए आपके पास किसी भूमि पर कब्जा होना आवश्यक है, अब जब कि ईराक तथा सीरिया के एक भूभाग पर आई.एस.आई.एस. का कब्जा हो गया है तो इनके प्रमुख बगदादी ने अपने को खलीफा घोषित कर दिया है जिसका नामकरण इस्लामिक स्टेट आॅफ ईराक एंड सीरिया (आई.एस.आई.एस.) किया गया है। यह विश्व का सबसे क्रूर संगठन है। सर कलम किये जाने के वीडियो दिखाकर लोगों के मन में दहशत पैदा करना इसकी योजना का एक हिस्सा है।
आई.एस.आई.एस. का दूसरे मजहब वालों के साथ क्या व्यवहार है यह देखने का विषय है। ईराक का एक शहर है कारकोश जो ईसाई बाहुल्य क्षेत्र है। आई.एस.आई.एस. ने अगस्त 2014 में इनके बिजली, पानी, खाद्य पदार्थों की आपूर्ति बाधित कर दी। ईसाइयों को कहा गया कि वे या तो इस्लाम ग्रहण करलंे या मरने को तैयार हो जायँ। आई.एस.आई.एस. की विचारधारा में एक बात उभर कर आयी है कि जो मुस्लिम हैं पर इस्लाम के नियमों का पालन नहीं कर रहे उनको कोई रियायत नहीं है, उन्हें ईसाइयों जैसी कोई च्वाइस नहीं दी जाती है। ऐसे मुस्लिमों को जिन्हें धर्म त्यागी ।चवेजंजम कहा गया है, स्वतः ही बिना किसी अन्य सुनवायी के मृत्युदंड का भागी माना गया है जबकि सीरिया के आई.एस.आई.एस. अधिकृत क्षेत्र के ईसाइयों को अधीनता स्वीकार करने तथा जजिया नाम के विशेष कर को अदा करने की सूरत में जीवित रहने दिया है। यह वही जजिया कर है जो अपने को कट्टर इस्लामी कहने वाला औरंगजेब हिन्दुओं पर भारत में लगाता था। यह संकेत हैं कि आई.एस.आई.एसमात्र एक आतंकवादी संगठन नहीं बल्कि विश्व के एक बड़े भू-भाग पर विशुद्ध इस्लामी शासन स्थापित करना चाहता है दूसरे शब्दों में कहा जाय तो शायद गलत नहीं होगा कि वे 7वीं सदी के इस्लाम को हूबहू अपने अधिकृत क्षेत्र में लागू करना चाहते हैं और उनका विश्वास है, उन्हें पूर्ण आशा है कि वे 2020 से पूर्व अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे। लोगों को उनके सपने शेखचिल्ली के ख्बाव लग सकते हैं पर वे पक्के तौर पर आशान्वित हंै कि ऐसा होगा इसीलिए उन्होंने एक नक्शा जारी कर 2020 तक अपने इस इस्लामी साम्राज्य की सीमाएँ भी बता दी हैं। पश्चिम में स्पेन से लेकर पूर्व में चीन तक यह राज्य फैला हुआ है। हाँ भारत भी इसका एक अंग है। आज जब दुनिया में सभी मजहब जो पूर्व शताब्दियों में युद्ध व हिंसा को अनिवार्य धर्म मानते थे, शान्ति की बात करते हंै वहाँ आई.एस.आई.एस. के विचारक युद्ध की स्थिति को अपरिहार्य व इस्लाम समर्थित बताने में कतई संकोच नहीं करते। क्रूरता उनके निकट शोभा व कर्तव्य है। निहत्थे लोगों का सर कलम करते अथवा उनके हाथ पीछे बाँध उन्हें गोलियों से छलनी करते वीडियो में उनकी क्रूरता तथा मुखमुद्रा बहुत कुछ बयान करती है। ऐसा भी लगता है कि अपनी रणनीति के निर्माण में अगर उनको हानि भी होती है तो भी वे उन तथाकथित सिद्धान्तों को जो उनकी दृष्टि में इस्लाम की सही व्याख्या हैं, छोड़ने को तैयार नहीं हैं। कुर्दों की राजधानी एर्बेल की तरफ कूच कर और उसके लगभग निकट तक कब्जा करने में उनको यह विदित ही था कि एर्बेल में अमरीकी नागरिक भारी संख्या में होने से उनका यह कदम अमरीका को युद्ध में कूदने का बहाना दे देगा, पर वे इससे विरत् नहीं हुए, यही बात दो अमरीकी पत्रकारों जेम्स फौली तथा स्टीवन के सर काट उनके वीडिओ जारी करने में दिखी।
ईराक के सिंजार प्रांत में 2 लाख की जनसंख्या में से अधिकांष एक और अल्पसंख्यक मजहब को मानने वाले यजीदी हैं। आई.एस.आई.एस. ने 3 अगस्त 14 को सिंजार पर कब्जा कर लिया। करीब बीस हजार यजीदियों ने सिंजार पर्वत पर शरण ली है उनके साथ अत्यंत क्रूर व्यवहार रोंगटे खड़े कर देने वाला है। कुर्दिश सेना ने दिसंबर 14 में कब्जा मुक्त कराया।
यद्यपि बगदादी एक बार ही सामने आया है पर इनके प्रचार के अनेक साधन हैं। मुहम्मद अल अदनानी आई.एस.आई.एसका मुख्य प्रवक्ता है। कहा जाता है कि गत सितम्बर में उसने पश्चिम के मुसलामानों विशेष रूप से कनाडा और फ्रांस के मुस्लिम युवकों को आह्नान किया कि वे काफिरांे को पकड़ें और पत्थर से उनका सर चूर-चूर कर दें, उन्हें जहर दे दें, उनके ऊपर गाड़ी चलाकर कुचल दें और उनकी खेतियाँ नष्ट कर दें। ये प्रकार सातवीं आठवीं शताब्दी के दंड-प्रकार बताए जाते हैं। अतः आई. एस.आई.एस. के जानकारों की मान्यता है कि आई.एस.आई.एस. विशुद्ध इस्लामिक है।
आई.एस.आई.एस. ने अपने कब्जे वाले इलाकों में स्व-मतानुसार बाकायदा प्रशासन स्थापित कर दिया है। एक सरकार की भाँति करों का लगाना, मूल्य नियंत्रण, अदालतों की स्थापना, स्वास्थ्य सेवाएँ, शिक्षा व्यवस्था तथा संचार सुविधाएँ प्रारम्भ करदी हैं। संतोष की बात यह है कि भारत सहित दुनिया भर के मुख्य इस्लामिक संगठन आई.एस.आई.एस. को गैर इस्लामिक मानते हैं और उनमंे से अधिकांश की रुचि और तवज्जो आई.एस.आई.एस. की ओर नहीं है।
आई.एस.आई.एस. पर एक विशेषज्ञ हैकेल के अनुसार आई.एस.आई.एस. प्राचीनतम इस्लाम की पुनस्र्थापना चाहता है। आज के इस्लाम में जिन प्रथाओं की चर्चा नहीं है आई.एस.आई.एस. खुलकर उनको स्थापित करने हेतु प्रयत्नशील है। दास प्रथा, सर काटना जैसी लुप्त क्रूरता आई.एस.आई.एस. द्वारा विजित प्रदेश में बहुतायत से दिखायी दे रहीं हैं। पकड़े गए लोगों में से महिलाओं से दास की भाँति व्यवहार करना, बेचना, उन्हें सेक्स स्लेव के रूप में उपयोग करना पवित्र कार्य समझा जा रहा है। यजीदी समुदाय की ऐसी कुछ महिलाओं ने जो आपबीती सुनायी है उसे सुनकर पत्थर दिल भी पिघल सकता है। इनमें 11 से 12 वर्ष की लड़कियों को भी नहीं छोड़ा गया। एक विशेष बात जो हैरान करने वाली है जिसकी जानकारी एक ऐसी लड़की से मिली जो आई.एस.आई.एस. के चंगुल से भाग निकली और कुछ मुखर होकर बात की। उसका कहना था कि जब भी उसके साथ रेप किया गया उससे पूर्व और बाद में रेपिस्ट ने प्रार्थना की। यह बात आई.एस.आई.एस. के सिद्धांत और लड़ाकों की मानसिकता की ओर इशारा करती है कि वे ऐसे कृत्यों को भी पवित्र धार्मिक दायित्व मानते हैं। इसी प्रकार सीरिया के ईसाइयों से जजिया लेने में भी कुरआन के सूरः अल-तौबा का निर्देश नजर आता है जिसमंे कहा गया है कि ईसाई और यहूदियों से तब तक लड़ो जब तक वे पूर्ण समर्थन और अपने को अधीन और जजिया कर न देने लगें।
अदनानी जो आई.एस.आई.एस. का मुख्या प्रवक्ता है उसने पश्चिम के नाम अपने एक सन्देश में कहा बताया कि- हम तुम्हारे रोम को फतह करेंगे, तुम्हारे क्रास को तोड़ देंगे तथा तुम्हारी औरतों को गुलाम बनायेंगे। और हम ऐसा नहीं कर पाए तो हमारे बच्चे और उनके बच्चे तुम तक पहुँचेंगे और तुम्हारी संतानों को गुलाम बनाकर बेचेंगे। आई.एस.आई.एस. की प्रचार पत्रिका का नाम ‘दबिक’ है जो कि ईराक के एक शहर का नाम भी है जिस पर आई.एस.आई.एस. ने कब्जा किया है ( दबिक के बारे में एक महत्वपूर्ण तथा दिलचस्प बात यह है कि एक हदीथ के अनुसार इसी स्थान पर दुनिया का अंत होगा। यही कारण है कि आई.एस.आई.एस. ने अपनी पत्रिका का नाम ‘दबिक’ रखा है तथा जब आज ‘लास्ट आवर’ की चर्चा ज्यादा सुनाई नहीं देती आई.एस.आई.एस. खुलकर इसकी चर्चा करता है) इसके अक्टूबर अंक में ‘कयामत की रात से पहिले दास प्रथा की पुनस्र्थापना’ शीर्षक से एक लेख किसी अज्ञात ने लिखा था। विषय था कि यजीदियों को धर्मच्युत मुसलमान मानकर मृत्युदंड दिया जाय या मूर्तिपूजक मानकर दास मात्र बना लिया जाय। सहस्रों यजीदियों को गुलाम बना लेना परिपुष्टि करता है कि आई.एस.आई.एस.ने उन्हें विधर्मी माना है। आई.एस.आई.एस. किस प्रकार पुरातन इस्लाम की स्थापना की तीव्र इच्छा रखता है यह इसी से स्पष्ट है कि आई.एस.आई.एस. समर्थक तो अंतिम कुछ खलीफाओं को उनके साम्राज्य में पत्थर मार कर दंड देना, हाथ पैर काट देना, दास प्रथा के अभाव के कारण और उनके कुरैशी न होने के कारण उन्हें खलीफा मानते ही नहीं हैं। इसीलिये बगदादी ने 29 जून को जो भाषण दिया था उसमें सच्चे सच्चे रूप में 1000 वर्ष से समाप्त हुयी खिलाफत साम्राज्य की आवश्यकता बतायी थी। यह भी ध्यान देने योग्य है कि इस्लाम धर्म के साथ साथ खिलाफत की भी उतनी ही आवश्यकता आई.एस.आई.एस. की नजरों में है। बगदादी और आई.एस.आई.एसकी दृष्टि में, चाहे एक व्यक्ति सच्चे मुसलमान का जीवन जिए पर खलीफा के समक्ष शपथ के विना उसने सच्ची इस्लामिक जिन्दगी जी, ऐसा नहीं कहा जा सकता। आई.एस.आई.एस. द्वारा अब यह प्रचारित किया जा रहा है कि हर सच्चे मुसलमान को खिलाफत साम्राज्य में प्रयाण कर जाना चाहिए।
आई.एस.आई.एस. के उत्थान तथा कम समय में ब्रिटेन से भी ज्यादा इलाके को जीत लेने में ईरान, ईराक, की राजनीतिक प्रतिबद्धताओं का योगदान रहा। शिया व सुन्नियों के बीच के झगड़े तथा इस आधार पर अमरीका से जोड़-तोड़ आदि कई ऐसे मुद्दे हैं जिनका विश्लेषण इस आलेख में संभव नहीं है। शिया मुस्लिमों को आई.एस.आई.एस. मुस्लिम नहीं मानता अर्थात् वे धर्मच्युत हैं दूसरे शब्दों में आई.एस.आई.एस. में उनका भविष्य मृत्यु ही है। उनके दृष्टिकोण से वे मुस्लिम राष्ट्राध्यक्ष भी धर्मच्युत् हंै जिन्होंने दैवीय कानून ‘शारिया’ के स्थान पर मनुष्यकृत कानून चलाए हैं- उनका भी एक ही दंड है मृत्यु दंड। आई. एस.आई.एस. के समर्थकों का कहना है कि अब जब खिलाफत की स्थापना हो चुकी है तब साम्राज्य विस्तार पवित्र दायित्व है जिसमें गैर मुस्लिम देशों पर विजय शामिल है। उनका मानना है कि अगर खलीफा साल में एक बार ‘जिहाद’ नहीं करेगा तो वह पाप होगा। आई.एस.आई.एस. द्वारा न केवल मर्दों वरन् औरतों से भी शामिल होने की अपील की जा रही है स्पष्ट है कि आई.एस.आई.एस. पूर्ण सोसाइटी बनाना चाहता है।
आई.एस.आई.एस. की भारत के बारे में भी योजना है। जैसा कि जिक्र किया जा चुका है आई.एस.आई.एस. द्वारा खिलाफत साम्राज्य का जो नक्शा दिया गया है उसमें भारत भी शामिल है। आई.एस.आई.एस. की इच्छा है कि भारतीय महाद्वीप मेंकार्यरत सभी आतंकी संगठनों को अपने नेतृत्व में लेकर भारत पर कब्जा करे। यह नहीं भूलना चाहिए कि इस समय ताकत और धन में आई.एस.आई.एस. का व अन्य आतंकी संगठनों का कोई मुकाबला नही है। बताया जाता है कि इनके पास 50000 प्रशिक्षित लड़ाके तथा 2 मिलियन पौंड धन है।
अब जबकि अमेरिका आई.एस.आई.एस. के खिलाफ अपने हवाई हमलों के साथ कूद चुका है (इन पंक्तियों के लिखने के समय टर्की को बेस बना अमेरिका ने हवाई हमले शुरू कर दिए हैं) ईरान, ईराक की सेनाएँ, शिया व कुर्द लड़ाके सभी आई. एस.आई.एस. के विरुद्ध कार्यवाही में रत हंै, आई.एस.आई.एस. के साम्राज्य विस्तार का भविष्य संदिग्ध तो कहा जा सकता है परन्तु आई.एस.आई.एस. पूर्ण आशान्वित है कि 2020 तक प्रस्तावित नक्शे का भूभाग उसके अधीन होगा और यह भी कि आई.एस.आई.एस. की यही आइडियोलाजी कायम रहती है तो वर्तमान मुसलमानों को उनसे सर्वाधिक खतरा है क्योंकि विशुद्ध इस्लाम का पालन न करने से वे उनकी दृष्टि में ‘एपोस्टेट’ हैं जिनके वास्ते एक ही दंड है वह है- मृत्युदंड।