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Satyarth Prakash Nyas / सम्पादकीय  / जहालत की इन्तहां

जहालत की इन्तहां

एक दिन एक समाचार पत्र में बड़ी विचित्र खबर पढ़ने को मिली। झारखंड के एक गाँव में स्वयं पिता व निकट सम्बंधियों की सहमति से एक 18 वर्ष की लड़की का विवाह एक कुत्ते से करा दिया गया। पहले तो सोचा कि कई बार लोग इसलिए अजीबोगरीब कार्य कर देते हैं ताकि वे प्रसिद्ध हो जायँ, अखबारों में उनकी चर्चा हो, वे टेलीविजन पर छा जायँ, परन्तु इस परिवार की पृष्ठभूमि ऐसी न थी कि वे ऐसी चालाकी भारी बात सोच भी सके। एक बात और, यह परिवार नितान्त अशिक्षित व पिछड़ा भी नही था कि घटनाओं की प्रकृति का तनिक भी ज्ञान न हो। फिर बात क्या थी? वस्तुतः अमन मुण्डा (लड़की का पिता) को यह विश्वास हो गया था कि उसकी बेटी बुरे शाप से ग्रसित है। इसका उपाय यह बताया गया कि उसकी शादी एक कुत्ते से करा दी जाय जिससे वह शाप मुक्त हो सके।
सभी गाँव वालों का दबाब था कि मुंदा (लड़की) का विवाह कुत्ते से करा दिया जावे, जिस पर उसका पिता सहमत हो गया। पूरे विधि-विधान से यह विवाह हुआ। यहाँ तक कि वर अर्थात् कुत्ते को एक शानदार कार में बिठाकर शादी के स्थान पर ले जाया गया। सभी रीति-रिवाजों को अपनाया गया।
इस खबर को पढ़कर मन विषाद से भर गया। मानव जीवन और पशु जीवन में फर्क क्या है? वह फर्क है विवेक का। बाकी सारे काम खाना-पीना , सोना आदि तो सभी प्राणी करते हैं। पर वे विवेक के अभाव में अपनी उन्नति का पथ नहीं तलाश पाते। अन्य योनियों की तो मजबूरी है पर अपने अमृत पुत्र मानव को तो परम पिता परमात्मा ने अत्यंत कृपा कर विवेक प्रदान किया है ताकि वे करणीय-अकरणीय में विभेद कर सकें।
पर आज का इंसान हर चीज के पीछे भाग रहा है, पर नीर-क्षीर विवेक के प्रति उत्सुक नही है। आज शिक्षा का तो विस्तार हो रहा है पर बौद्धिकता का नहीं। परिस्थितियों, घटनाओं पर तर्क पूर्ण विचार को आवश्यक नहीं माना जाता है। विशेष रूप से जहाँ आस्था का प्रश्न आता है वहाँ हर प्रकार की मूर्खता चिन्तन के क्षेत्र से बाहर हो जाती है। एक तरफ जहालत से भरे उक्त प्रकार के कृत्य हमारे सामने आते हैं, वहीं नरबलि, पशुबलि जैसे क्रूरतम काण्ड घटते रहते हैं। स्वयं सेवी संगठन भी इस बौद्धिक सर्वनाश को रोकने के प्रति समुत्सुक नहीं हैं। ऐसे में आर्य समाज जैसे बुद्धिवादी संगठन से इस दिशा में जन-जागरण की अपेक्षा की जाती है।
शाप मुक्त करने अथवा अन्य ऐसे ही प्रयोजन के लिए उक्त वर्णित मूर्खता कोई इकलौता कृत्य नहीं है। कुछ अन्य उदाहरण प्रस्तुत हैं –
18 वर्ष के लड़के सलवा कुमार ने दो कुत्तों को पत्थर फैंक-फैंक कर मार दिया और उनकी लाश को पेड़ पर लटका दिया। निःसंदेह यह क्रूर कृत्य था। पर यहाँ बात अंधविश्वास की है। इस घटना के पश्चात् सलवा के हाथ तथा पाँव लकवाग्रस्त जैसे हो गये। सुनने की क्षमता भी कम हो गयी। उसने अपने दुःखांे का कारण और उपाय एक ज्योतिषी से पूछा- ज्योतिषी ने कहा कि उसने कुत्तों को मारा था अतः उनका शाप सलवा को लगा है और यह तब तक सलवा का पीछा नहीं छोड़ेगा जब तक कि सलवा किसी कुतिया से शादी नही कर लेता। चुनाचे सलवा ने नवम्बर २००७ में सेल्वी नामक कुतिया से शादी कर ली। फरवरी २००९ में पूर्वी भारत के एक गाँव में एक शिशु का विवाह पड़ोस के कुत्ते के साथ इस कारण कर दिया गया कि गाँव वालों का विश्वास (अन्धविश्वास) था कि इससे शिशु को जंगली जानवर नहीं खायेंगे।
जून २००३ में कोलकाता के निकट संथाल जनजाति की ९ वर्षीय कन्या का विवाह कुत्ते के साथ कर दिया। कुत्ते ही ऐसी अंधविश्वास से भरी शादियों के केंद्र में रहे हों ऐसा नही है, इस दौड़ में मेढ़क और साँप भी शामिल हैं। जून २००६ में भुवनेश्वर में एक महिला बीमार पड़ी तो उसका मानना था कि वह एक साँप को दूध पिलाने से ठीक हुई। इसलिए उसने साँप से शादी कर ली। इस शादी में 2000 अतिथि सम्मिलित हुए। शानदार भोज दिया गया।
जनवरी २००७ में सात वर्ष की दो लड़कियों का विवाह दो मेढ़कों के साथ कर दिया गया। कारण कि पल्लीपुदुपेट गाँव में एक रहस्यमयी बीमारी फैल गयी थी इसे रोकने के लिए विग्नेश्वरी तथा मैशाकिन्नी नामक लड़कियों का विवाह मेढ़कों के साथ धूमधाम से करा दिया गया। दो अलग-अलग मंदिरों में सैकड़ों गाँव वासियों के समक्ष ये विवाह संपन्न हुए। कुछ गाँव वाले वर पक्ष के हो गए तो कुछ वधू पक्ष के।
जहालत की इन्तहांअंधविश्वास से ग्रस्त इस अभागे देश में केवल यह उपर्वर्णित घटनाएँ ही नही असंख्य घटनाएँ इस प्रकार की होती रहती हैं। हम कौतूहल के साथ इन्हें पढ़कर विस्मृत भी कर देते हैं, हम इन्हें चिन्ता की दृष्टि से नही देखते क्योंकि हमें लगता है कि इससे समाज को कोई खतरा नहीं। पर हम यह भूल जाते हैं कि विवेक और तर्क को तिलांजलि दे देना एक ऐसी भूल है जो एक महामारी की तरह समाज में फैल जाती है। यह संभव नहीं कि एक प्रकार के अंधविश्वास को हम हलके से ले लें और दूसरे को अन्य प्रकार से। अगर शोभन सरकार के स्वप्न पर हम विरोध का मानस नहीं बना पाते या उसे समाज के लिए घातक नहीं मानते तो इसी अंधविश्वास के विस्तार पर पशुबलि अथवा नरवलि जैसे जघन्य कृत्यों की भत्र्सना कर पायेंगे? दोनों का उत्स अंधविश्वास है।
अभी हाल ही में रायगढ़ खर्राघाट के पास स्थित केलो नदी में पानी में तैरती हुई एक बच्ची की लाश मिली थी जिसकी उम्र लगभग 3 से 4 माह थी। पानी में तैरती इस बच्ची की लाश में यह देखा गया कि उसके एक हाथ में लाल चुनरी का टुकड़ा बँधा हुआ था और शरीर पर कोई चोट के निशान नहीं थे। मृत बच्ची काला कपड़ा पहने हुए और काली बिंदी लगाये हुये मिली थी। स्पष्टतः यह नरबलि का जघन्य कृत्य था ।
जब तक सभी प्रकार के अंधविश्वासों के विरुद्ध चैतन्य नहीं होंगे, कभी सामान्य तो कभी क्रूर कृत्य होते रहेंगे। समाज में अंधविश्वास के विरुद्ध मानस पैदा नहीं करेंगे तो इससे कभी निस्तार नहीं मिलेगा।