एक करोड़ या एक गोली
बहुत पहले एक फिल्म आयी थी- प्रतिघात। एक पुलिस आफीसर की दिनदहाड़े सैंकड़ों लोगों के सामने गुण्डों के द्वारा हत्या कर दी गयी। कानून को गवाह चाहिए। गुण्डों के डर के कारण किसी ने गवाही नहीं दी। परन्तु नायिका ने गवाही दी। नतीजा यह हुआ कि भारी भीड़ के समक्ष नायिका को गुण्डों द्वारा निर्वस्त्र कर उसे अपमानित किया गया। आगे की कहानी इस आलेख के संदर्भ में अधिक प्रासंगिक नही है। वस्तुस्थिति यह है कि यह सिर्फ फिल्म की कहानी नही असल जिन्दगी में यही होता है। अपराधी बेखौफ क्यों हैं? उनके मन में कानून का इतना भी डर नहीं है कि अपराध छिप कर करें। बल्कि वे दिन दहाड़े इसलिए कत्ल आदि अपराध करते हंै ताकि देखने वालों के मन में डर बैठ जाय और वे खौफ के मारे गवाही देने आगे न आवें और सबूतों के अभाव में वे सजा से बच जावें। ेसा सिर्फ फिल्मों में होता हो ऐसा नहीं है वरन् वास्तविक घटनाओं से ही प्रेरित होकर ऐसी फिल्में बनीं हैं। यहाँ एक बहुचर्चित हत्याकाण्ड का जिक्र करना चाहेंगे। साल २००० में एक प्रसिद्ध फैशन डिजाइनर के क्लब में निश्चित समय के बाद शराब देने से मना करने पर शराब सर्व करने वाली एक फैशन डिजाइनर जेसिका लाल को एक प्रभावशाली नेता के बेटे ने सरे आम गोली मार दी। इस घटना के सैंकड़ों गवाह थे। पुलिस ने दर्जनों लोगों को गवाह बनाया। एक बाॅलीवुड एक्टर ने न सिर्फ आरोपी को पहचाना वरन् पुलिस स्टेशन में थ्प्त् भी दर्ज करायी। यह एक ऐसा केस था जिसे वचमद ंदक ेीनज कहा जाता है। सैकड़ों लोगों के सामने हत्या हुई। स्वाभाविक था कि आरोपी को आसानी से सजा हो जाती। पर ऐसा हुआ नहीं। दर्जनों गवाह कोर्ट में अपने बयानों से मुकर गए। सबसे महत्त्वपूर्ण गवाह वह एक्टर था जिसने थ्प्त् दर्ज कराई थी। उसने कोर्ट में कहा कि थ्प्त् में क्या लिखा था वह नहीं जानता क्योंकि वह हिन्दी नहीं जानता। पुलिस के अनुसार आरोपी ने एक ही पिस्तौल से दो गोलियाँ चलाई थीं पहली जेसिका को डराने के लिए तथा दूसरी से जेसिका की मौत हुई। कोर्ट में स्थिति बदल गयी। एक पिस्तौल की बजाय दो पिस्तौलों की बात कही गयी। फोरेंसिक विशेषज्ञों ने भी इसे सपोर्ट किया। एक्टर ने भी अपने बयान में परिवर्तन करते हुए कहा कि पहली गोली जो छत में लगी आरोपी ने चलाई परन्तु दूसरी गोली जिससे जेसिका मरी, किसने चलाई, वह नहीं जानता। इन सब गवाहों के बयान कैसे परिवर्तित हुए? तब ‘एक करोड़ या एक गोली’ का जुमला सामने आया। आरोपी का पिता ताकतवर नेता था तो एक और आरोपी का पिता बहुत बड़ा डाॅन। लालच तथा भय ही वे बड़े कारण थे जिन्होंने गवाहों को झूठ बोलने पर विवश कर दिया था। इस सबका परिणाम यह हुआ कि आरोपी तथा उसके साथी बाइज्जत बरी हो गए। खुशी की बात यह रही कि इस केस में अन्तिम परिणाम ऐसा नहीं हुआ। मीडिया की सक्रियता तथा जनाक्रोश ने अपना असर दिखाया। इस केस में एक दिलचस्प मोड़ तब आया जब एक न्यूज चैनल के खोजी पत्रकारों ने महत्वपूर्ण गवाह उस एक्टर का स्टिंग आपरेशन कर यह साबित कर दिया कि वह हिन्दी अच्छी तरह जानता था। परिणाम शुभ हुआ। इस केस में आरोपियों को उम्रकैद की सजा मिली जो माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा भी बहाल रखी गयी। इस केस पर भी एक फिल्म बनी। छव वदम ापससमक श्रमेपबं . हमने इस केस का विवरण यहाँ इसलिए दिया कि किस प्रकार ताकतवर लोग गवाहों को प्रभावित करके न्याय की हत्या कर देते हैं। यह आए दिन होता है। सैकड़ों उदाहरण हमारे सामने हैं। एक आश्चर्य जिसकी वजह से हमने यह विषय उठाया है वह है वर्तमान समय में तथाकथित आध्यात्मिक गुरुओं का भी डाॅन बन जाना या उनके सदृश व्यवहार करना। पहले तो ताकतवर नेता अथवा बड़े डाॅन ही ‘एक करोड़ या एक गोली’ के जुमले के प्रदाता होते थे परन्तु आश्चर्य है कि संत और ईशदूत होने का दावा करने वालों ने गुंडों तथा हार्डकोर अपराधियों की भूमिका अपनाली है। आप देख ही चुके हैं कि रामपाल को पकड़ने के लिए 40000 पुलिसकर्मी लगाने पड़े। तथाकथित आध्यात्मिक गुरु , विश्वभर में अपने आश्रम स्थापित करने वाले आसाराम बापू बलात्कार के आरोप में जोधपुर जेल में बंद हैं। आसाराम के तथा उनके पुत्र के खिलाफ बलात्कार के आरोपों में प्रोसीक्यूशन के पास दो अत्यंत महत्वपूर्ण गवाह थे जो आसाराम के अत्यंत नजदीकी थे , एक थे उनके निजी वैद्य अमृत प्रजापति जो कि जाहिर है कि आसाराम के सभी गहरे तथा गुप्त राज जानते होंगे तथा दूसरे उनके पाचक जो आश्रम की सभी अंदरूनी बातें जानते थे। प्रजापति ने कहा था कि आसाराम अफीम का सेवन करते थे तथा उनसे अनेक प्रकार की सेक्सवर्धक दवाएँ मँगाते थे। उन्होंने ये भी कहा था कि उन्होंने आसाराम को एक करोड़ या एक गोलीअनेक बार महिलाओं के साथ आपत्तिजनक अवस्थाओं में देखा था। ऐसे अहम् गवाह अमृत प्रजापति पर तब गोलियाँ चलाई गयीं जब वे राजकोट में अपने क्लीनिक पर थे। अपने मृत्युपूर्व बयान में प्रजापति ने ६ लोगों को नामजद किया पर इस घातक हमले के फलस्वरूप उनकी मृत्यु हो गयी। एक गवाह विदा हो गया। यह हमला किसके कहने पर हुआ होगा यह कहने की आवश्यकता नहीं है। आसाराम का रसोइया तथा निजी सहायक अखिल गुप्ता भी सरकारी गवाह बनकर आसाराम के लिए जबरदस्त खतरा बन गया। अहमदाबाद आश्रम में एक दशक तक वह संत का करीबी रहा। आश्रम की हर गतिविधि की अखिल को जानकारी होती थी। इसकी पत्नी भी आसाराम के आश्रम में सेवादार थी। अखिल ने यह स्वीकार किया था कि सूरत की बहनों को बुलाने के बाद आश्रम के कमरों में भेजा गया था। इनको भी, मुजफ्फरनगर में जब वे अपने घर लौट रहे थे सड़क पर गोली मार दी गयी। दूसरा महत्वपूर्ण गवाह भी खत्म। इस केस में पीड़िता के पिता को लगातार धमकी दी जा रही है। सूरत में एक गवाह पर तेजाब डाला गया। डाॅनगिरी की हद तब पार हो गयी जब जोधपुर में कोर्ट से बाहर निकल रहे गवाह राहुल सचान पर चाकुओं से हमला कर दिया गया। खुले आम दिनदहाड़े वो भी न्याय के मंदिर में। इनके हौंसलों के आगे अच्छे से अच्छा डाॅन भी शरमा जायँ। एक कहावत है कि बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ छोटे मियाँ सुभान अल्लाह। आसाराम के सुपुत्र नारायण उनसे भी एक कदम आगे हैं। फरार बने रहने के लिए गुजरात क्राइम ब्रांच के एक इन्स्पेक्टर को 2 करोड़ रुपये दिए गए, पकड़े जाने पर 8 शिष्याओं से सम्बन्ध की बात स्वीकार कर ली है। इस प्रकार इन धर्म गुरुओं ने इस आलेख के शीर्षक को सार्थक करते हुए लालच और भय दोनों का प्रयोग अपने विरुद्ध साक्ष्यों को मिटाने के लिए संभावित रूप से किया है। अगर उपरोक्त सारी स्थितियाँ किसी माफिया डान के केस में होतीं तो किसी को आश्चर्य नहीं होता पर यहाँ चर्चा एक तथाकथित आध्यात्मिक गुरु की हो रही है। अब सोचना हमको है कि हम ही हैं जो इन धर्म गुरुओं को जन्म देते हैं, ताकत देते हैं। अतः आतंक के पर्याय, ऐसी स्थितियों के जनक गुरुओं को किसी भी प्रकार की खाद देनी बंद करें।