मत चूके चौहान
गत दिनों में एकैवबपंस डमकपंपर पाकिस्तान से प्रेषित एक वीडियो देखने में आया। इतना वीभत्स कि रौंगटे खड़े हो गये। वीडियो में एक गधे को बुरी तरह तड़पा-तड़पा कर काटा गया था। देखा भी न जाय इतना दर्दनाक दृश्य। पर उस तथाकथित पाकिस्तानी महिला पत्रकार को इस दर्द की तनिक भी अनुभूति नही थी। उसका सारा ध्यान हराम तथा हलाल के गोश्त में लगा हुआ था। वह कसाई को थप्पड़ मार-मार कर बार-बार यही कहे जा रही थी या खुदा! यह हराम का गोश्त खिलाता है। इस दृश्य को देखकर मेरा सम्पूर्ण बजूद हिल गया। किसी वीभत्स से वीभत्स दृश्य को लिख देना अथवा पढ़ पाना आसान है पर उसे देखना, निरीह जानवर की चीखें सुनना आसान नहीं। पर उस दृश्य को कारित करने वाले का हृदय कितना क्रूर होगा अनुमान लगाना कठिन नहीं। अपनी जिह्ना के स्वाद के लिए क्या निरीह पशुओं को मारना मनुष्यता है? नहीं। यह तो घोरतम पाशविकता है। धर्म के नाम पर, कर्मकाण्डों के नाम पर, ईश्वर/देवी/देवता को प्रसन्न करने के नाम पर, तथाकथित कुर्बानी देने के नाम पर, अथवा भोज्य सामग्री प्राप्त करने के नाम पर छोटे से छोटे प्राणी का वध अनैतिक ही नहीं पाप है। सच्चे अर्थों में जो धर्म है वह ऐसी हिंसा की आज्ञा कभी नहीं दे सकता। वैदिक धर्म संसार का प्राचीनतम व सार्वभौम धर्म है। वेद में अनेकों स्थलों पर पशु वध से विरत् रहने का आदेश है। वेद में तो यहाँ तक कहा है- यः पौरुषेयेण क्रविषा सम यो अ×व्येन प×ाुना यातुधानः। यो अघ्न्याया भरति क्षीरमग्ने तेषां ×ाीर्षाणि हरसापि वृ×च। अर्थात् जो राक्षस मनुष्य का, घोड़े का और गाय का मांस खाता हो तथा दूध की चोरी करता हो उसका सिर कुचल देना चाहिए। सभी प्राणियों के वध का निषेध करते हुए लिखा है- ‘मा हिंस्यात् सर्वभूतानि’।वस्तुतः ईश्वर तो प्राणिमात्र का पिता है वह किसी भी प्राणी के मारने की आज्ञा क्योंकर दे सकता है या प्रसन्न हो सकता है? स्वार्थी मनुष्य जिस-जिस पदार्थ से प्रसन्न होते थे वैसे ही देवता भी उन्होंने कल्पित कर लिए ताकि उस पर तत्-तत् पदार्थ चढ़ाकर प्रसाद रूप से वह उन्हें सेवन करने को मिल जाय। पशुओं को मारना नहीं उनकी रक्षा करना मनुष्यत्व है। ‘पशून पाहि’ (यजु. 1/1) अर्थात् पशुओं की रक्षा करो। मनुष्य की विशेषता करुणा तथा परोपकार है। भारतीय मनीषा में करुण रस का प्रवाह सतत् देखा जा सकता है। क्रोफ्च पक्षी-वध ने बाल्मीकि में करुण रस संचार कर संसार के आजतक के सर्वश्रेष्ठ कवि के रूप में प्रतिष्ठत करवा दिया। इतिहास में झाँकें तो कहीं हमें श्रीराम के पूर्वज सम्राट रघु अपने जीवन को गौ-रक्षा हित बलिदान करने हेतु तत्पर दिखायी देते हैं, कहीं महाराज शिवि कबूतर की जान बचाने हेतु अपने मांस को काट-काटकर देते दिख पड़ते हैं तो कहीं रामकुमार सिद्धार्थ हंस की जान बचाने को तत्पर। हमारी आँखों के सामने वह दृश्य साकार हो उठता है जब प्राणिमात्र की वेदना को अपने हृदय में स्थान देने वाले देव दयानन्द एक दिन उदयपुराधीश की राज्यसभा में उनके समक्ष खड़े होकर स्वयं को बलि के नाम पर मारे जाने वाले पशुओं के वकील के रूप में प्रस्तुत करते हैं और उनसे अनुरोध करते हैं कि देवी-देवताओं के नाम पर पशुओं के इस क्रूर वध को वे बन्द करें। महाराणा स्वामी जी के कथन के औचित्य को मान तो गये किन्तु उन्होंने विनम्रता पूर्वक कहा कि शताब्दियों से प्रचलित इस बर्बर प्रथा को एक बार ही समाप्त नहीं किया जा सकता तथापि उनका प्रयत्न होगा कि धीरे-धीरे जनमत को शिक्षित कर वे इसे बन्द कर दें। ऋषि के आर्यसमाज ने पशुबलि रोकने के जो प्रयास किए, वे आज के समय में स्वप्न सदृश दिखायी देते हैं। धर्म के नाम पर होने वाले पशुबलि के जघन्य अपराध को रोकने हेतु आर्यसमाजियों ने जो प्रयास किए तथा दुःख उठाए उनमें से कुछ के तो हम भी साक्षी रहे हैं। सवाईमाधोपुर, हिण्डौन के पास करौली में प्रसिद्ध स्थान ‘कैला देवी’ का है। एक समय था उस मंदिर में जब वार्षिक मेला लगता था तो मंदिर के प्रांगण में सैंकड़ों अबोध पशुओं का वध होता था, बलि दी जाती थी। हमारी आयु 8-10 वर्ष रही होगी पर वह खून-कटे पशु-मंदिर-प्रांगण आज भी स्मृत हैं। उस समय आर्यसमाज (जिसमें हिण्डौन, सवाईमाधोपुर, बयाना, भरतपुर और मथुरा के आर्यसमाजी विशेष सक्रिय थे) ने बड़ी प्रभावशाली भूमिका निभायी। मेले के दिनों में आर्यसमाज के कैम्प लगा करते थे। पशुबलि के विरोध में जन-जागृति के कार्यक्रम अनेक प्रकार से किए जाते थे। प्रारम्भ में खूब विरोध हुआ। अनेक कष्ट सहने पड़े पर अन्ततोगत्वा सफलता प्राप्त हुई – ऋग्वेद 10/78/16 करुण पुकारहुयी। हम इस सब के साक्षी रहे क्योंकि पूज्य पिताजी की इसमें सक्रिय भूमिका थी। 1967 के गोरक्षा आन्दोलन में जेल जाने वालों में आर्यसमाजी 70 प्रतिशत से अधिक थे। हमारा पूरा परिवार जेल गया। हम दसवीं कक्षा के विद्यार्थी थे। एक मास हमने भी तिहाड़ जेल में व्यतीत किया। अस्तु। कहने का तात्पर्य यह है कि सामाजिक कुरीतियों के निवारण हेतु अनेक मोर्चों पर संघर्ष करने वाले आर्यसमाज ने पशु-बलि के खिलाफ भी सक्रिय भूमिका निभाई थी। परन्तु आज Shining Arya Samaj का युग आ गया है। असत्य के विरुद्ध लड़ने की जिजीविषा समाप्त प्रायः हो गयी है। Real Arya Samaj के समक्ष चुनौतियों का या तो हमें अन्दाजा नहीं या सच कहें तो उस ओर, हम देखना नहीं चाहते। क्योंकि उस मार्ग पर काँटे तथा गुमनामी के अँधेरे हैं। Shining Arya Samaj कीर्ति तथा यश का मार्ग प्रतीत होता है। अस्तु। निवेदन हम यह करना चाहते हैं कि पशुबलि तथा मांसाहर किसी भी दृष्टि से जायज नहीं है। हमें एक छोटे से छोटे जीव को भी मारने का अधिकार नहीं है। प्रभु की सृष्टि में छोटे से छोटे सदस्य का अपना महत्व है। उसे समाप्त कर हम जघन्य अपराध तो कर ही रहे हैं, अपना भी नुकसान कर रहे हैं। जानवर भी हमारे मित्र हैं, सहायक हैं। गाय, बैल, भैंस, भैंसा, बकरी जैसे महा उपकारक पशुओं की तो बात क्या करें एक छोटा सा जीव गुबरीला भी हमारा कितना हितकारी है देखें- येे बाग-बगीचे, खेतों में पौधों व फसल को नुकसान पहुँचाने वाले कीड़ों को खाकर नष्ट कर देते हैं। ये पौधे खाने वाले कीड़ों की काॅलोनियों में सैकड़ों अण्डे देते हैं। जैसे ही ‘लार्वा’ बनते हैं वे तुरन्त ही फसल को नष्ट करने वाले कीड़ों को खत्म करना प्रारम्भ कर देते हैं। बाज, गिद्ध जैसे पक्षी प्रकृति के सफाई कर्मचारी हैं। अतः देवी देवताओं को प्रसन्न करने के निमित्त से स्वयं की स्वार्थपूर्ति निन्दनीय है। उसी प्रकार खुदा के नाम पर असंख्य बकरों को मारा जाना तथा उसे कुर्बानी का रूप देना उचित नहीं है। यहाँ यह अवश्य है कि हिन्दुओं में अनेक सुधारवादी आन्दोलन हुए हैं। हिन्दू-समाज अन्ततोगत्वा सुधारों को स्वीकार कर लेता है। यही कारण है कि आज हिन्दुओं में पशुबलि का प्रचलन समाप्त प्रायः हो गया है। मुस्लिम समाज में भी अपने अन्दर से इसी प्रकार के सुधारों हेतु प्रयास होना चाहिए। क्या विडम्बना है कि एक ओर गधे पर ज्यादा बोझ लाद देने जैसे छोटे कार्य (यह भी उचित नहीं) पर कानून का उल्लंघन होता है। पशु-प्रेमी संगठन लामबन्द हो जाते हैं वही धर्म के नाम पर सहस्रों पशुओं की हत्या कर दी जाती है और इस ओर से सब आँखे मूँदे बैठे हैं। हमंे चाहिए हम वेदाज्ञा का पालन करते हुए प्राणी मात्र के मित्र बनें। प्रियो देवानां भूयासम्। प्रियः प्रजानां भूयासम्। प्रियः प×ाूनां भूयासम्। प्रियः समानानां भूयासम्। – अथर्व. 17/1/2-5 पशु-पक्षी आदि निरीह प्राणियों की हत्या का क्रम शीघ्र बन्द हो इस ओर कठोर कदम उठाए जाने चाहिए, ऐसा न हो कि इनकी करुण पुकार सृष्टि को विनष्ट कर दे। मानव के समस्त सुखों का मूलोच्छेद कर दे। (जनवरी अंक में च्ंपद ूंअमेनामक लेख अवश्य पढ़ें)। विष्णु शर्मा ने पफ्चतंत्र में ठीक लिखा है कि- ‘जंगलों को काटने वाले, पशुओं को मारने वाले और मनुष्यों की बलि देने वाले यदि स्वर्ग को जाएँगे तो भला नरक को कौन जाएगा?